स्वर्ग बना सकते हैं
कवि - रामधारी सिंह 'दिनकर'
पद्यांशों के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
1.धर्मराज यह भूमि किसी की _ _ _ _ _ _ _ _ आशंकाओं से जीवन।
प्रश्न – 1 कौन किसे उपदेश दे रहा है? वक्ता ने उसे धर्मराज क्यों कहा है? उसने भूमि और भूमि पर बसने वाले मनुष्यों के संबंध में क्या कहा है?
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति में भीष्म पितामह धर्मराज युधिष्ठिर को उपदेश दे रहें हैं। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को धर्मराज इसलिए कहा है क्योंकि उसने कभी भी अपना धर्म नहीं छोड़ा तथा दूसरों को धर्म पर चलने की प्रेरणा दी। उसने भूमि और भूमि पर बसने वाले मनुष्य के संबंध में कहा है कि इस पृथ्वी पर सभी लोग समान है और सभी को प्रकृति के तत्व(धरती, आकाश, धूप व हवा) समान रूप से मिलने चाहिए क्योंकि उन पर सभी का समान रूप से अधिकार है।
प्रश्न – 2 उपर्युक्त पंक्तियों में ‘भूमि’ के संबंध में क्या कहा गया है तथा क्यों?
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों में भूमि के संबंध में कहा गया है कि यह भूमि किसी की खरीदी हुई दासी नहीं है। इस भूमि पर जन्म लेने वाले हर एक मनुष्य का इस पर समान अधिकार है। उन्होंने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि कुछ लोगों से उनका अधिकार छीन लिया जाता है और ईश्वर द्वारा दी गई हर एक चीज से वंचित कर दिया जाता है।
प्रश्न – 3 कवि के अनुसार मानवता के विकास के लिए क्या-क्या आवश्यक है?
उत्तर – कवि के अनुसार मानवता के विकास के लिए मुक्त प्रकाश, मुक्त वायु, बाधा रहित विकास और आशंका मुक्त जीवन अति आवश्यक है। इस पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी लोगों का यह अधिकार है कि उनका बिना किसी बाधा के विकास हो। उन्हें किसी भी प्रकार की चिंता अथवा भय का सामना न करना पड़े तथा सभी को प्रकृति के तत्व समान रूप से मिलें। मानवता के विकास के लिए यही सबसे आवश्यक है।
प्रश्न – 4 उपयुक्त पंक्तियों द्वारा कवि क्या संदेश दे रहा है?
उत्तर – पंक्तियों द्वारा कवि यह संदेश दे रहे हैं कि पृथ्वी पर जन्म लेने वाले सभी लोग समान है। इसलिए उन्हें समान रूप से उनका अधिकार मिलना चाहिए। ईश्वर द्वारा प्रदत्त प्रत्येक चीजों पर सभी का अधिकार है। किसी भी मनुष्य का अधिकार छीना नही जाना चाहिए और यही मानवता है।
2. लेकिन विघ्न अनेक अभी _ _ _ _ _ _ _ _ शांति कहाँ इस भव को?
प्रश्न – 1 ‘लेकिन विघ्न अनेक अभी इस पथ पर अड़े हुए है ‘ – कवि किस पथ की बात कर रहा है? उस पथ में कौन-कौन सी बाधाएँ हैं?
उत्तर – उपर्युक्त पंक्ति में कवि मानवता रूपी विकास के पथ की बात कर रहे हैं। इस पथ पर अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ समस्याएँ और बाधाएँ हैं, जिससे मानव का समुचित विकास नहीं हो पाया है। कवि कहते हैं कि जब तक मनुष्य के न्याय के अनुसार अधिकारों को स्वीकार नहीं किया जाता, जब तक उन्हें वे अधिकार नहीं मिल जाते, तब तक समाज में शांति स्थापित नहीं हो सकती।
प्रश्न – 2 धरती पर चैन और शांति लाने के लिए क्या आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – धरती पर चैन और शांति लाने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य के न्यायोचित अधिकार उन्हें दिए जाएं। इसलिए कवि कहते हैं कि जब तक मनुष्यों के न्याय के अनुसार अधिकारों को स्वीकार नहीं किया जाता, जब तक उनके अधिकार उन्हें मिलने न जाएं तब तक धरती पर चैन और शांति नही हो सकती।
प्रश्न – 3 उपर्युक्त पंक्तियों का संदेश स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – पंक्तियों में कवि कहते हैं कि मानवता रूपी विकास के पथ में अनेक समस्याएँ तथा कठिनाइयाँ हैं जो पर्वत बनकर उस मार्ग पर अड़े हैं। अतः मानवता रुपी विकास तथा समाज में शांति की स्थापना के लिए मनुष्यों को उनके न्यायोचित अधिकार मिलने चाहिए।
प्रश्न – 4 उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियों का भावार्थ यह है कि मानवता रूपी विकास के पथ में अनेक समस्याएँ तथा कठिनाइयाँ हैं जो पर्वत बनकर उस मार्ग पर अड़े हैं और इसलिए समाज का समुचित विकास नहीं हो पाया है। मनुष्यों को न्याय के अनुसार अधिकार देना अत्यावश्यक है तभी समाज में शांति स्थापित हो सकती है।
3. जब तक मनुज-मनुज का यह _ _ _ _ _ _ _ _ और भोग – संचय में।
प्रश्न – 1 ‘शमित न होगा कोलाहल’ – कवि का संकेत किस प्रकार के कोलाहल की ओर है? यह कोलाहल किस प्रकार शांत हो सकता है?
उत्तर – उपर्युक्त पंक्तियों में कवि का संकेत मनुष्यों को समान अधिकार न मिलने से उत्पन्न युद्ध तथा मतभेद जैसे कोलाहल की ओर है। यदि सभी मनुष्य को सुख प्राप्ति के समान अधिकार प्राप्त हो गए तो कोलाहल शांत हो सकता है।
प्रश्न – 2 आज मानव के संघर्ष का मुख्य कारण क्या है? कभी के इस संबंध में क्या विचार हैं?
उत्तर – आज मानव के संघर्ष का मुख्य कारण यह है कि उन्हें प्रकृति के सभी साधन तथा समानता के आधार पर सबको समान अधिकार प्राप्त नहीं हो पाए हैं। कवि का इस संबंध में यह विचार है कि स्वार्थ से ग्रसित कुछ लोग दूसरों की चिंता किए बिना धन-संचय में लगे हुए हैं जिससे संदेह तथा भय का वातावरण बना रहता है।
प्रश्न – 3 कवि के अनुसार आज का मनुष्य कौन-सी बात भूल गया है तथा वह किस प्रवृत्ति में फँस गया है?
उत्तर – कवि के अनुसार मनुष्य मानवता को भूल गया है। वह स्वार्थी बनकर धन-संचय की प्रवृति में फँस गया है। वह दूसरे के बारे में ना सोच कर केवल अपने स्वार्थ के बारे में सोचता है।
प्रश्न – 4 ‘ लगा हुआ केवल अपने में और भोग-संचय में’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – उपर्युक्त पंक्ति का आशय यह है कि कुछ स्वार्थी व्यक्ति दूसरे के बारे में न सोचकर केवल अपने लिए धन संचय में लगे हुए हैं इसलिए समाज में असमानता विकसित होती है और दूसरों के अधिकारों का हनन होता है। परिणामस्वरूप संदेह और भय का वातावरण बन जाता है।
4. प्रभु के दिए हुए सुख इतने _ _ _ _ _ _ _ _ स्वर्ग बना सकते हैं।
प्रश्न – 1 ‘ प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं विकीर्ण धरती पर’ – पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहते हैं कि ईश्वर के द्वारा इस पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में सुख के इतने साधन उपलब्ध है कि उससे भी मनुष्यों की सभी आवश्यकता पूर्ण हो सकती हैं। यदि स्वार्थी लोग अपने लिए संचय करने की भावना छोड़ दे तो पृथ्वी के साधनों का उपयोग सभी मनुष्य कर सकते हैं। अतः भाव यह है कि पृथ्वी पर सुख के साधनों की कमी नही है।
प्रश्न – 2 ‘कहाँ अभी इतने नर’ – पति द्वारा कवि क्या समझाना चाहता है और क्यों?
उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति द्वारा कवि यह समझाना चाहते हैं कि पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में सुख के इतने साधन उपलब्ध है कि उसमें हर एक मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा कर सकता है तथा उपभोग करने के बाद भी वे साधन बच जाएंगे अतः इसलिए कवि कहते हैं कि इस पृथ्वी पर अभी इतने मनुष्य भी मौजूद नही जो पृथ्वी पर मौजूद भोग-सामग्री को समाप्त कर सकें।
प्रश्न – 3 उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - उपर्युक्त पंक्तियों में कवि यह कहते हैं कि इस धरती पर ईश्वर द्वारा प्रदत सुख के इतने साधन है कि उससे सभी मनुष्यों की आवश्यकताएं पूर्ण हो सकती है यदि कोई व्यक्ति अपने लिए संचय की दुष्ट प्रवृत्ति त्याग दें तो सबके भोगने के बाद भी खाद्य सामग्री समाप्त बची रह जाएगी। अतः कहने का भाव यह है कि इस पृथ्वी पर अभी इतने मनुष्य भी मौजूद नही जो इस पर मौजूद भोग-सामग्री को समाप्त कर सकें।
प्रश्न – 4 कवि के अनुसार इस पृथ्वी को स्वर्ग किस प्रकार बनाया जा सकता है?
उत्तर – कवि के अनुसार इस धरती पर सभी मनुष्य समान रूप से जन्म लेते हैं और जन्म लेते ही धरती पर समस्त संसाधनों पर उनका समान अधिकार बनता है। यदि सभी मनुष्यों को न्यायोचित अधिकार प्राप्त हो तथा सभी स्वार्थी व्यक्ति अपने बारे में न सोचकर दूसरे के बारे में सोचें और सभी को समान अधिकार और पृथ्वी पर उपस्थित समान भोग सामग्री प्राप्त हो तो निश्चय ही पृथ्वी को स्वर्ग बनाया जा सकता है।