Monday, 22 April 2024

साखी


कविता  1 साखी
कवि - कबीरदास


 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए - 

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय।।

प्रश्न - 1 संत कबीर ने गुरु और ईश्वर की तुलना किस प्रकार की है तथा इस दोहे के माध्यम से क्या सीख दी है ?

उत्तर 1. संत कबीर ने गुरु और ईश्वर की तुलना करते हुए कहा है कि अगर गुरु और ईश्वर दोनों मेरे सामने हो तो मैं गुरु के चरण स्पर्श करूंगा क्योंकि गुरु ने ही मुझे ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताया हैं। इस दोहे के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि गुरु के बिना ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि ईश्वर को पाने का माध्यम गुरु ही है।

प्रश्न - 2 'गुरु' और 'भगवान' को अपने सामने पाकर कबीर ने कौन-सी समस्या उत्पन्न हुई ? कबीर ने उसका हल किस प्रकार निकाला और क्यों ?

उत्तर 2. गुरु और भगवान को सामने पाकर कबीर की समस्या है कि वह किसके चरण स्पर्श करें। कबीर ने उसका हल इस प्रकार निकाला की वह पहले गुरु के चरण स्पर्श करेगा क्योंकि गुरु ने ही ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताया है। इस प्रकार गुरु ईश्वर से भी महान है। अगर गुरु न होते तो ईश्वर की प्राप्ति असंभव थी।

प्रश्न - 3 'बलिहारी गुरु आपनो' कबीर ने ऐसा क्यों कहा है ?

उत्तर 3. 'बलिहारी गुरु आपनो' अर्थात् मैं अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ । कबीर ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि गुरु ने ही उसे भगवान के दर्शन करवाएं हैं।

प्रश्न -4 'गुरु गोबिंद दोऊ खड़े' - शीर्षक साखी के आधार पर गुरु का महत्त्व प्रतिपादित कीजिए।

उत्तर 4. कबीर की दृष्टि में गुरु की महिमा अपार है। वह गुरु को ईश्वर से भी बढ़कर मानते हैं। उनका मत है कि गुरु की कृपा से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। कबीर का कहना है कि भगवान के रूठने पर गुरु का सहारा मिल सकता है किंतु गुरु के रूठने पर कोई सहारा नहीं मिल सकता है।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि।।

प्रश्न - 1 'जब 'मैं' था तब हरि नहीं' - दोहे में 'मैं' शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है ? 'जब मैं था तब हरि नहीं' - पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर 1. दोहे में 'मैं' शब्द का प्रयोग स्वयं कबीरदास जी ने अहंकार के लिए किया है। इस पंक्ति द्वारा कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक मनुष्य के भीतर अहंकार की भावना होती है तब तक उसमें ईश्वर का वास नहीं हो सकता है। अहंकारी व्यक्ति ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग को नहीं समझ सकता।

प्रश्न - 2 कबीर के अनुसार प्रेम की गली की क्या विशेषता है ? प्रेम की गली में कौन-सी दो बातें एक साथ नहीं रह सकती और क्यों ?
उत्तर 2. कबीर के अनुसार प्रेम की गली बहुत संकरी (पतली) और तंग है। इसमें भगवान और अहंकार साथ-साथ नहीं रह सकते। भाव यह है कि यदि व्यक्ति अहंकारी है तो वह कभी भी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता और जो भगवान को पा लेता है, उसका अहंकार स्वत: ही समाप्त हो जाता है।

प्रश्न - 3 उपर्युक्त साथी द्वारा कबीर क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर 3. उपर्युक्त साखी द्वारा कबीर यह संदेश देना चाहते हैं कि व्यक्ति को घमंड का त्याग कर देना चाहिए क्योंकि जिन वस्तु पर वह घमंड करता है, वे एक दिन समाप्त हो जाती हैं परंतु ईश्वर को प्राप्त करके घमंड करने वाली वस्तुओं की आवश्यकता ही नहीं रहती। ईश्वर शाश्वत है, सत्य है, और हमेशा रहने वाला है।

प्रश्न - 4 'प्रेम गली अति  साँकरी' - पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 4. उपर्युक्त पंक्ति का आशय यह है कि प्रेम गली बहुत छोटी है। उसमें एक साथ मनुष्य का अहंकार और भगवान नहीं रह सकते। जहाँ ईश्वर का वास होता है वहां अहंकार नहीं होता। इस प्रकार भगवान के प्रति जो प्रेम गली है, उसमें ईश्वर ही रह सकते हैं अहंकार नहीं।

काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।

प्रश्न - 1 कबीर ने मसजिद की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं ?
उत्तर 1. कबीर ने अपनी साखियों में प्रचलित रूढ़ियों एवं आडंबरों पर गहरी चोट की है। कबीर जी कहते हैं कि मुसलमानों ने कंकड़ पत्थर जोड़कर मस्जिद बना ली है। यह उनकी धार्मिक उपासना का स्थल है जिस पर मौलवी चिल्ला-चिल्ला कर नमाज पढ़ते हैं, जैसे कि उनका खुदा बहरा हो। उनके अनुसार खुदा तो सर्वत्र व्याप्त है, उसके लिए मस्जिद बनाकर उसमें अज़ान के लिए जोर-जोर से चिल्लाना आवश्यक नहीं है।

प्रश्न - 2 उपर्युक्त पंक्तियों में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 2. उपर्युक्त पंक्तियों में निहित व्यंग्य यह है कि खुदा को मन ही मन भी याद किया जा सकता है। उसे चिल्ला कर बुलाने की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा हर व्यक्ति के हृदय में वास करता है। इस प्रकार उसे शांत भाव से भी याद किया जा सकता है।

 प्रश्न - 3 उपर्युक्त दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कबीर ने बाहय आडंबरो के विरोधी थे।
उत्तर 3. कबीर के अनुसार ईश्वर को याद करने के लिए बाहरी  आडंबरों की आवश्यकता नहीं है। जो व्यक्ति परमात्मा को सच्चे दिल से याद करेगा वह उसे निश्चित ही प्राप्त कर लेगा।

प्रश्न - 4 उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कबिर क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर 4. उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कबीर यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें अंधविश्वास व बाहरी आडंबरों को त्याग देना चाहिए क्योंकि ईश्वर को सच्चे मन से याद करके भी प्राप्त किया जा सकता है।

पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार।।

प्रश्न - 1 कबीर हिंदू की मूर्ति पूजा पर किस प्रकार व्यंग्य कर रहे हैं ?
उत्तर 1. हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर व्यंग करते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि अगर पत्थर पूजने से भगवान मिल जाते हैं तो मैं हिमालय पर्वत को पूजुं। उससे तो यह गेहूं पीसने की चक्की ज्यादा भली है, जिससे सारा संसार अन्य खाता है। कबीर का कहना है कि मनुष्य को मूर्ति पूजा छोड़कर निर्गुण भक्ति अपनानी चाहिए।

प्रश्न - 2 'ताते यह चाकी भली' - पंक्ति द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर 2. कबीर दास जी मूर्तियों से गेहूं पीसने की चक्की की तुलना करते हुए कहते हैं कि यह गेहूं पीसने की  चक्की ज्यादा भली है क्योंकि इससे पीसा हुआ अन्न सारा संसार खाता है।

प्रश्न - 3 'कबीर एक समाज सुधारक थे' - उपर्युक्त पंक्तियों के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए तथा बताइए कि इन पंक्तियों द्वारा वह क्या संदेश दे रहे हैं ?
उत्तर 3. कबीर जी वास्तव में एक समाज सुधारक थे। उन्होंने हिंदू धर्म में फैले अंधविश्वासों मूर्ति पूजा और अन्य कुरीतियों का घोर विरोध किया। उन्होंने मुसलमानो  के बाहरी आडंबरों, रोज़े, नमाज़, काज़ी, मुल्ला, आदि लोगो का खंडन किया।

प्रश्न - 4 कबीर की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर 4. कबीर की भाषा में भोजपुरी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली, उर्दू और फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्द भी पाए जाते हैं, इसलिए विद्वानों ने कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी कहा है।

सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय।।

प्रश्न - 1 'भगवान के गुण अनंत हैं' - कबीर ये यह बात किस प्रकार स्पष्ट की है ?
उत्तर - प्रस्तुत साखी के माध्यम से कबीरदास जी ने भगवान के गुणों का महिमामंडन किया है। वे कहते हैं कि यदि सातों समुद्रों की स्याही बना दी जाए, सारे जंगलों के पेड़ों की कलमें बनाई जाएँ तथा समस्त पृथ्वी को कागज के रूप में प्रयोग कर लिया जाए तब भी हम ईश्वर के गुणों का वर्णन नहीं कर सकते क्योंकि भगवान के गुण अनंत हैं।

प्रश्न - 2 कबीर की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - कबीरदास निर्गुण भक्ति शाखा के ज्ञानाश्रयी कवि थे। उन्होंने निर्गुण ब्रह्मा की उपासना की इसलिए इन्होंने मूर्ति-पूजा, ढोंग-आडंबर आदि का डटकर विरोध किया। यह भक्ति सामान्य व्यक्ति के लिए आसान नहीं होती क्योंकि इसमें जप-तप और ध्यान का महत्व होता है।

प्रश्न - 3 कबीर ने भगवान के गुणों का बखान करने के लिए किन - किन वस्तुओं की कल्पना की है ? वे इस कार्य के लिए पर्याप्त क्यों नहीं है ?
उत्तर - कबीर ने भगवान के गुणों का बखान करने के लिए सातों समुद्रों को स्याही, सारे जंगलों के पेड़ों को कलम तथा समस्त पृथ्वी को कागज बनाने की कल्पना की है। किंतु फिर भी वे इस कार्य के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि भगवान के गुण अनंत है।

प्रश्न - 4 'लेखनि सब बनराय' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि यदि सारे जंगल के पेड़ों से कलम बना दिया जाए और समस्त पृथ्वी को कागज बनाकर उसका प्रयोग किया जाए तो भी ईश्वर के गुणों को नहीं लिखा जा सकता। इसलिए हम कह सकते हैं कि भगवान के गुण अनंत हैं।

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