Wednesday, 6 April 2022

महायज्ञ का पुरस्कार


 महायज्ञ का पुरस्कार
  - सियारामशरण गुप्त
उत्तर कुंजी

1. 'अकस्मात दिन फिरे और सेठ को गरीबी का मुंह देखना पड़ा।' 'संगी साथियों ने भी मुंह फेर लिया।'

क- सेठ के चरित्र की क्या विशेषताएं थी ?

उत्तर – सेठ अत्यंत विनम्र, उदार और धर्मपरायण थे। कोई साधु-संत उनके द्वार से निराश न लौटता था। सेठ ने दान में न जाने कितना धन दीन-दुखियों में बांट दिया था।

ख- 'संगी-साथियों ने भी मुंह फेर लिया' पंक्ति द्वारा समाज की किस दुर्बलता की ओर संकेत किया गया है ?

उत्तर - इस पंक्ति द्वारा समाज की उस दुर्बलता की ओर संकेत किया गया है कि जब विपत्ति आती है तो पक्के दोस्त, रिश्तेदार एवं संगी साथी भी साथ नहीं देते।

ग- उन दिनों क्या प्रथा प्रचलित थी? सेठानी ने सेठ को क्या सलाह दी ?

उत्तर – उन दिनों यज्ञ से प्राप्त फलों को खरीदने व बेचने की प्रथा प्रचलित थी। सेठानी ने सेठ को यह सलाह दी कि उन्हें अपने एक यज्ञ को बेच देना चाहिए ताकि उनके घर का गुजारा चल सके।

घ- सेठानी की बात मानकर सेठ जी कहां गए? धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में क्या अफवाह थी ?

उत्तर - सेठानी की बात मानकर सेठ जी कुंदनपुर नाम के एक नगर गए। धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में यह अफवाह थी कि उन्हें एक दैवी शक्ति प्राप्त है, जिसके द्वारा वह तीनों लोकों की बात जान लेती थीं।

2. सेठ जी, यज्ञ खरीदने के लिए तो हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना पड़ेगा।'

क - वक्ता कौन है? उसका उपर्युक्त कथन सुनकर सेठ जी को क्यों लगा कि उनका मजाक उड़ाया जा रहा है?

उत्तर - वक्ता धन्ना सेठ की पत्नी है। उसकी बात सुनकर सेठ जी को यह इसलिए लगा कि उनका मजाक उड़ाया जा रहा है क्योंकि वह बहुत उदार, अच्छे और धर्मपरायण व्यक्ति थे। जिनको यह लग रहा था कि उन्होंने आज तो क्या कई वर्षों से कोई यज्ञ नहीं किया।

प्रश्न - 2 सेठानी के अनुसार सेठ जी ने कौन-सा महायज्ञ किया था?

उत्तर - सेठानी के अनुसार सेठ जी ने यह महायज्ञ किया था कि वह खुद बहुत भूखे थे लेकिन जो वह अपने खाने के लिए चार रोटी लाए थे, वह सब रोटी खुद न खाकर एक दुर्बल कुत्ते को खिला दी और पानी पीकर कुंदनपुर के लिए चल दिए।

ग - सेठानी की बात सुनकर यज्ञ बेचने आए सेठ जी की क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर - सेठानी की बात सुनकर यज्ञ बेचने आए सेठ जी को आश्चर्य हुआ, क्योंकि उनके अनुसार उन्होंने कभी कोई महायज्ञ किया ही नहीं था। सेठ जी को लगा उनका मजाक उड़ाया जा रहा है।

घ - यज्ञ बेचने आए सेठ के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर - यज्ञ बेचने आए सेठ के चरित्र की विशेषताएँ थी कि वे बहुत उदार, धर्मपरायण और विनम्र थे। पहले वे बहुत धनी थे। उनके घर से कोई साधु संत खाली नहीं जाता था, सबको भरपेट भोजन मिलता था। वे गरीबों की हमेशा मदद करते रहते थे और इस कारण एक दिन वह बहुत गरीब हो गए।


3. सेठ ने आद्योपांत सारी कथा सुनाई। कथा सुनकर सेठानी की समस्त वेदना जाने कहां विलीन हो गई।

क- सेठ जी को खाली हाथ वापस आता देखकर सेठानी की क्या प्रतिक्रिया हुई और क्यों ?

उत्तर – सेठ जी को खाली हाथ वापस आते देखकर सेठानी डर गई क्योंकि उन्होंने सोचा था कि यज्ञ बेचने से बहुत बड़ी चीज मिलेगी और जब सेठ जी ने पूरी कहानी सुनाई तो वह बहुत खुश हुईं। उन्होंने यह सोचा कि मुश्किल के समय में भी उनके पति ने धर्म का साथ नहीं छोड़ा और अपने पति के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, “धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे।”

ख - सेठ ने आद्योपांत जो कथा सुनाई, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – जब सेठ कुंदनपुर की ओर जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में एक भूखा कुत्ता मिला। उन्होंने उसे अपनी चारों रोटियां खिला दी। जब वह धन्ना सेठ के यहां पहुंचे तो धन्ना सेठ की पत्नी ने उनसे उनके इसी महायज्ञ को मांग लिया। इस पर सेठ को आश्चर्य हुआ और कहने लगे कि मैंने तो कई सालों से महायज्ञ किया ही नहीं। उन्हें लगा कि सेठानी उनका मजाक उड़ा रही है, इसलिए वह बिना यज्ञ बेचे वहां से चले गए।

ग - सेठ जी की बात सुनकर सेठानी की समस्त वेदना क्यों विलीन हो गई ?

उत्तर - सेठ जी की बात सुनकर सेठानी की समस्त वेदना इसलिए विलीन हो गई क्योंकि उन्होंने सोचा कि मुश्किल समय में भी सेठ जी ने अपना धर्म नहीं छोड़ा। उनके पति महान है और फिर सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, “धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे।”

घ - 'महायज्ञ का पुरस्कार' कहानी के द्वारा लेखक ने क्या संदेश दिया है?

उत्तर -  महायज्ञ का पुरस्कार कहानी के द्वारा लेखक ने यह संदेश दिया है कि निस्वार्थ भावना से किया गया कर्म किसी महायज्ञ से कम नहीं होता तथा इस प्रकार के कर्म का फल अवश्य प्राप्त होता है। जीवो पर दया करना मनुष्य का परम कर्तव्य है। नर सेवा ही नारायण सेवा सेवा होती है। स्वयं कष्ट सहन करके दूसरों के कष्टों का निवारण करना मानव धर्म है और दिखाने के लिए किया गया कर्म महत्वहीन होता है।

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