पाठ – 05
अपना-अपना भाग्य
लेखक – जैनेंद्र कुमार
निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
1. ‘नैनीताल की संध्या धीरे धीरे उतर रही है।'
प्रश्न-1 नैनीताल की संध्या की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर – नैनीताल की संध्या की विशेषता यह हैं कि उस समय आकाश में भांप जैसे बादल थे जो रुई के रेशे की तरह लेखक और उसके मित्र के सिर को छूकर बेरोक घूम रहे थे जैसे उनके साथ खेलना चाहते हो। हल्के प्रकाश और अंधियारी से रंग कर कभी वे नीले दिखते, कभी सफेद और कभी ज़रा लाल पड़ जाते।
प्रश्न - 2 लेखक अपने मित्र के साथ कहाँ बैठा था? वह वहाँ बैठा-बैठा बोर क्यों हो रहा था और क्यों कुढ़ रहा था?
उत्तर – लेखक अपने मित्रों के साथ नैनीताल की किसी एक सड़क के किनारे बेंच पर बैठे थे। पँद्रह मिनट बाद लेखक वहाँ से जाना चाहते थे, परंतु मित्रों के उठने का कोई इरादा ना मालूम हुआ इसलिए लेखक बोर हो रहे थे और अपने मित्रों के उठने का इंतजार कर रहे थे।
प्रश्न - 3 लेखक के मित्र को अचानक क्या दिखाई पड़ा? उसका परिचय दीजिए।
उत्तर – लेखक के मित्र को कोहरे में एक काली - सी मूर्ति आती दिखाई पड़ी तीन गज दूरी से दिखाई पड़ा एक लड़का नंगे पैर नंगे सिर एक मैली सी कमीज लटकाए आ रहा था। उसके बड़े बड़े बाल थे जिन्हें वह खुजला रहा था। वह लगभग दस बारह वर्ष का था। उसका रंग गोरा था तथा माथे पर झुर्रियां थी।
प्रश्न - 4 जरा-सी उम्र में उसकी मौत से पहचान कैसे हो गई थी?
उत्तर – ज़रा-सी उम्र में उसकी मौत से पहचान हो गई थी क्योंकि उसे खाना नहीं मिलता था, कभी मिल गया तो कभी नहीं मिलता था। उसके पास पैसे नहीं थे, नौकरी भी नहीं थी। वह अपने मां-बाप से दूर था। वह अपना गांव छोड़कर एक साथी के साथ आया था जो होटल मालिक द्वारा सताये जाने पर दम तोड़ चूका था। इस प्रकार बालक की छोटी-सी उम्र में मौत से पहचान हो गई।
2. बालक फिर आँखों से बोलकर मूक खड़ा रहा। आँखें मानो बोलती थी- 'यह भी कैसा मूर्ख प्रश्न है।'
प्रश्न - 1 किस प्रश्न को सुनकर बालक मूक खड़ा रहा। उसकी आँखों ने क्या कह दिया?
उत्तर - अनेक प्रश्नों के उत्तर देने के बाद जब लेखक के मित्रों ने उस बालक से उसके रात में सोने के स्थान और उन्हीं कपड़ों में सोने के विषय में पूछा तो बालक मूक ही खड़ा रह गया उसकी आँखें जैसे बोलती थीं कि यह कैसा प्रश्न हैं, यहाँ मुझे खाने को कुछ नहीं है और ये लोग कपड़ों के लिए पूछ रहें हैं।
प्रश्न - 2 अपने परिवार के बारे में बालक ने क्या बताया?
उत्तर - अपने परिवार के विषय में बालक ने बताया कि उसके माँ-बाप पंद्रह कोस दूर गाँव में रहते हैं और उसके कई भाई-बहन हैं। उनके घर की हालत इतनी खराब थी कि परिवार के सदस्यों को खाना भी नसीब नहीं होता था। इसलिए वह वहाँ से भाग आया।
प्रश्न - 3 लेखक को बालक की किस बात को सुनकर अचरज हुआ?
उत्तर - लेखक को बालक के साथी की मृत्यु होने की बात पर अचरज हुआ और यह जानकर कि उसे मौत के विषय में पता है क्योंकि उसकी उम्र के बालक को मौत के विषय में कोई जानकारी नहीं होती।
प्रश्न - 4 लेखक और उसका मित्र बालक को कहाँ ले गए और क्यों? वकील साहब का पहाड़ी बालकों के संबंध में क्या मत था?
उत्तर - लेखक और उसके मित्र बालक को अपने वकील दोस्त के होटल में ले गए क्योंकि उसको एक नौकर की जरुरत थीं। वे उस बालक को उनके यहाँ इस उम्मीद से लेकर गए थे की उनका वकील दोस्त अपने होटल में उस बालक को काम दे देगा किंतु उनके वकील दोस्त ने नौकरी देने से साफ इंकार कर दिया क्योंकि उसको पहाड़ी बालाकों पर बिल्कुल भी विश्वास न था।
3. ‘भयानक शीत है। उसके पास कम बहुत कम कपड़े….?’ ‘यह संसार है यार,’ मैंने स्वार्थ ही फ़िलासफ़ी सुनाई?
प्रश्न - 1 लेखक के मित्र की उदासी का कारण स्पष्ट करते हुए बताइए कि वह पहाड़ी बालक की सहायता क्यों नहीं कर सका?
उत्तर – लेखक के मित्र की उदासी का कारण यह था कि वह उस बालक की सहायता करना चाहते थे, परंतु वकील साहब को बहुत समझाने के बाद भी वे नहीं माने और अपने कमरे में सोने के लिए चले गए। बालक समझ गया कि वहाँ उसका कुछ नहीं होगा और वह भी वहाँ से चला गया।
प्रश्न - 2 ‘यह संसार है यार’ – वाक्य आजकल के मनुष्यों की किस प्रवृत्ति का द्योतक है ?
उत्तर – ‘यह संसार है यार’ – वाक्य आजकल के मनुष्यों की इस प्रवृत्ति का द्योतक है कि आजकल हर मनुष्य मतलबी हो गया है। गरीब और जरूरतमंद लोगों पर विश्वास नहीं किया जाता है। उन्हें संदेह की निगाह से देखा जाता है जिस कारण वकील साहब ने लड़के को नौकरी पर नहीं रखा था।
प्रश्न - 3 ‘अपना - अपना भाग्य' कहानी में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – अपना-अपना भाग्य इस वाक्य का यह अर्थ है कि जिस व्यक्ति के भाग्य में जो लिखा होता है, उसे वही मिलता है न तो उससे अधिक और न तो उससे कम मिलता है। जिस प्रकार बालक के भाग्य में दुख, पीड़ा और कपट थे तो उसे वहीं मिले। पहले उसका मित्र इस निर्दयी संसार को छोड़कर चला गया था और बाद में दुनिया का सताया वह बालक भी ठिठुरती ठंड में अपने प्राण त्याग देता है।
प्रश्न - 4 ‘अपना - अपना भाग्य' कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर – इस कहानी के शीर्षक की सार्थकता यह है कि जिस व्यक्ति के भाग्य में जो होता है उसको वही मिलता है। जिस प्रकार उस बालक को दुख और पीड़ा सहनी पड़ी क्योंकि उसके भाग्य में वही लिखा था, उसी प्रकार हम सब के भाग्य में भी जो लिखा होता है, वही हमें मिलता है। हम अपना अपना भाग्य बदल नहीं सकते।
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