Monday, 28 April 2025

Class 8 Sanskrit Chapter 5 : विश्वमनवा :

लंका विजय के पश्चात् राम ने कहा, "जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं।"
धन्य हैं वे विश्व-मानव भारतीय, जिन्होंने संपूर्ण विश्व में भारत का गौरव बढ़ाया।
उनमें से कुछ प्रमुख हैं सत्य नडेला, शिवनादर, और सुंदर पिचाई।

सत्य नडेला
1967 में हैदराबाद नगर में सत्य का जन्म हुआ। उन्होंने मनीपाल विश्वविद्यालय से अभियांत्रिकी शिक्षा प्राप्त की। 1992 में उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट संस्थान में कार्य शुरू किया। उन्होंने विश्वास और श्रद्धा के साथ अपना कार्य किया। फलस्वरूप, 2014 में वे माइक्रोसॉफ्ट संस्थान के तीसरे मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सी.ई.ओ.) बने। बचपन से ही उन्हें क्रिकेट और संगीत में रुचि थी।अंग्रेजी और हिंदी भाषा में काव्य निर्माण में कुशल सत्य नडेला ने विश्व में भारत का गौरव बढ़ाया।

शिव सुब्रमण्य नदर
शिव का जन्म 1945 में तमिलनाडु राज्य में हुआ। उन्होंने अभियांत्रिकी शिक्षा में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1976 में, जब भारत में केवल 250 संगणक (कंप्यूटर) थे, तब उन्होंने अपने छह मित्रों के साथ मिलकर 'एच.सी.एल.' नामक संगणक निर्माण की संस्था की स्थापना की। इसके बाद, 1989 में उन्होंने अमेरिका में भी एच.सी.एल. संस्था की शाखाएँ शुरू कीं। इसके अतिरिक्त, भारत में उन्होंने 'शिव नदर' नाम से विद्यालयों और महाविद्यालयों की स्थापना की। वे 'सूचना प्रौद्योगिकी के जनक' के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। सॉफ्टवेयर निर्माण में प्रगति करके अब पद्मभूषण शिव नदर पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गए हैं।

सुंदर पिचाई
सुंदर का जन्म 1972 में मदुरै नगर में हुआ। उन्होंने खड़गपुर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) में अभियांत्रिकी पढ़ाई की। बचपन से ही उनकी स्मरणशक्ति अत्यंत उत्कृष्ट थी। वे अपने विश्वविद्यालय की क्रिकेट टीम के कप्तान थे। फुटबॉल और शतरंज (चेस) में भी उनकी रुचि है। 2004 में उन्होंने गूगल संस्थान में कार्य शुरू किया। अपने सर्जनात्मक चिंतन से वे एंड्रॉइड के प्रमुख बने। गूगल गियर्स, गूगल क्रोम, गूगल ड्राइव, गूगल मैप, जीमेल इत्यादि के मुख्य चिंतन उनके ही थे। अंततः, विनम्रता, परिश्रम और विश्वास जैसे गुणों के साथ, 2015 में वे गूगल संस्थान के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सी.ई.ओ.) बने।

हम विश्व में कहीं भी अपने विकास के लिए कार्य करें, परंतु इसके साथ ही भारत के विकास के लिए भी चिंतन करें। छात्र भी देश के प्रति स्नेह केवल 15 अगस्त या 26 जनवरी को ही न दिखाएँ, बल्कि संगठन भावना और परिश्रम के साथ भारत के विकास के लिए कार्य करें।

Nav Sanskrit Class 8 Ch 1 Explanation

संस्कृत कक्षा 8 पाठ - 1
हिंदी अनुवाद

(आठवीं कक्षा। उत्सव का वातावरण। कक्षा के एक कोने में भगवान श्रीगणेश की भव्य सुसज्जित मूर्ति है। छात्र एकत्रित होकर प्रार्थना करते हैं।) वक्रतुण्ड! महाकाय! सूर्यकोटिसमप्रभ! निर्विघ्नं कुरु मे देव! सर्वकार्येषु सर्वदा।।(प्रार्थना के बाद प्रसन्न छात्र आपस में बातचीत करते हैं। तभी आचार्य कक्षा में प्रवेश करते हैं।)

सभी छात्र:(खड़े होकर हाथ जोड़कर) – नमस्ते आचार्य! आपको गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।

आचार्य: शुभ हो। धन्यवाद! गणेशोत्सव की आप सभी को बधाइयाँ। कृपया बैठ जाएँ।

सभी छात्र: धन्यवाद, आचार्य।

गोपाल: (कक्षा का छात्रप्रमुख) आचार्य, आज से इस उत्सव का आरंभ होगा। अतः हम इस विषय में कुछ विशेष जानना चाहते हैं।

आचार्य: ठीक है। सबसे पहले कोई यह बताए कि आज कौन सी तिथि है?

जया: हाँ, आचार्य। मैं जानती हूँ। आज भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि है।

आचार्य: बहुत अच्छे। शिवपुराण की कथा के अनुसार, इसी तिथि को भगवान श्रीगणेश का आविर्भाव हुआ था। इसलिए हम उनके जन्मदिवस को गणेश चतुर्थी के रूप में श्रद्धा के साथ मनाते हैं।

गिरिजा : महोदय! तो फिर वह कथा सुनाइए।

आचार्य: (हल्के से हँसते हुए) – ठीक है। ध्यान और शांति के साथ सुनो। पुराने समय में एक समस्या के समाधान के लिए देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। उस समय श्रीगणेश अपने बड़े भाई कार्तिकेय के साथ वहाँ बैठे थे। देवताओं के कष्ट को दूर करने के लिए भगवान शिव ने दोनों महावीरों, गणेश और कार्तिकेय, से पूछा, “तुम दोनों में से कौन देवताओं के कष्ट को शीघ्र दूर करने में सक्षम है?” दोनों ने ही उत्साहपूर्वक कहा, ‘मैं सक्षम हूँ।‘ भगवान शिव ने कहा, “तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, वही इस कार्य के लिए नियुक्त होगा। “यह सुनकर कार्तिकेय ने तुरंत अपने वाहन मयूर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए प्रस्थान किया। अब बाल गणेश ने सोचा, ‘मैं अपने वाहन मूषक के साथ इतने कम समय में पृथ्वी की परिक्रमा कैसे करूँगा?’
कुछ सोचकर गणेश ने तुरंत अपने माता-पिता, शिव और पार्वती, की सात बार प्रदक्षिणा की और उन्हें प्रणाम किया।कुछ समय बाद, पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे कार्तिकेय ने पूछा, “गणेश ने परिक्रमा क्यों नहीं की?” श्रीगणेश ने कहा, “माता और पिता के चरणों में ही समस्त लोक समाहित हैं। इसलिए मैंने केवल उनकी ही परिक्रमा की।“गणेश के इस बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर को सुनकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने गणेश को देवताओं के संकट निवारण के लिए नियुक्त किया।

सभी छात्र: (प्रसन्न मुद्रा में) आचार्य, इस कथा से हमारी जिज्ञासा शांत हुई और ज्ञानवर्धन भी हुआ। इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

आरिफ: आचार्य, मेरे मन में एक प्रश्न है कि श्रीगणेश का रूप इतना भिन्न क्यों है? जैसे मूषक जैसा छोटा वाहन, लंबा पेट, छोटी आँखें, बड़े कान इत्यादि।

आचार्य: वत्स, यह सब प्रतीकात्मक है। इससे हमें जीवन के लिए सकारात्मक संदेश मिलते हैं। जैसे- उनका स्थूल शरीर यह बताता है कि धीरे-धीरे चलो, लेकिन अपने लक्ष्य को कभी न भूलो। उनकी थोड़ी टेढ़ी सूंड यह दर्शाती है कि ‘सफलता का मार्ग आसान नहीं होता।‘ बड़े कान यह कहते हैं कि हमें सब कुछ सुनना चाहिए। छोटी आँखें सूक्ष्म दृष्टि की सूचक हैं। अतः जीवन में मनुष्य हमेशा सकारात्मक रहे, यही भगवान श्रीगणेश का जीवन संदेश है।(तभी घंटी बजती है।)

सभी छात्र: (खड़े होकर हाथ जोड़ते हुए) धन्यवाद, आचार्य। हम जीवन में इन संदेशों को कभी नहीं भूलेंगे। श्रीगणेश की तरह विघ्नों और कष्टों को अनदेखा कर प्रगति के पथ पर चलेंगे। (उच्च स्वर में) ॐ श्रीगणेशाय नमः।
आचार्य: तुम्हारे मार्ग शुभ हों।

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