पाठ का सारांश
यह कहानी हालदार साहब और नेता जी सुभाषचंद्र बोस के चश्मे के इर्द-गिर्द घूमती हैं। इस कहानी में कहानीकार स्वयं प्रकाश एक सामान्य नागरिक कैप्टन चश्मेवाले के माध्यम से देश के करोड़ों नागरिकों के योगदान की चर्चा कर रहे हैं, जो अपनी स्तर पर देश के निर्माण में सहयोग देते हैं तथा अपनी देशभक्ति का परिचय देते हैं।
हालदार साहब को हर पँद्रह दिन कंपनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरना पड़ता था। जहाँ किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी। जिसे कस्बे के इकलौते ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी ने बनाया था।
मूर्ति संगमरमर की थी और लगभग दो फुट ऊँची थी। मूर्ति देखने में बहुत सुंदर लगती थी और फौजी वर्दी में थी। एक बात हालदार साहब को खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नही था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला प्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। दूसरी बार जब हालदार साहब उधर से गुजरे तो उन्होंने देखा की पहले मूर्ति पर मोटे फ्रेम वाला चौकोर चश्मा था, अब तार के फ्रेमवाला गोल चश्मा और जब तीसरी बार वहाँ से गुजरे तो दूसरा चश्मा था।
जब हालदार साहब के मन का कौतूहल बहुत बढ़ गया तो चौराहे पर स्थित पानवाले से पूछ ही लिया कि मूर्ति का चश्मा कैसे बदल जाता है। उत्तर में पानवाला बताता है कि एक कैप्टन चश्मे वाला है जो मूर्ति का चश्मा बदल देता है। हालदार साहब पानवाले से पूछते हैं कि कैप्टन चश्मेवाला चश्मा क्यों बदलता रहता है तो जवाब में पानवाला हालदार साहब को बताता है कि यदि ग्राहक को मूर्ति पर लगा चश्मा पसंद आता है तो कैप्टन वही चश्मा उतार कर ग्राहक को दे देता है और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा देता है। कैप्टन को नेताजी के बिना चश्मे की मूर्ति अच्छी नहीं लगती। कैप्टन एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लंगड़ा आदमी था, जो सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा पहनता था। हालदार साहब फिर पूछते हैं की ओरिजिनल चश्मा कहाँ है तो पानवाला बताता है कि मास्टर बनाना भूल गया।
दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उसी कस्बे से गुजरते और मूर्ति के बदलते हुए चश्मे को देखकर प्रसन्न होते। एक दिन ऐसा हुआ कि मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं था और आसपास की दुकानें भी बंद थीं, लेकिन जब अगली बार भी चश्मा नहीं दिखाई दिया तो उन्होंने उसी पान वाले से पूछा कि आज तुम्हारे नेता जी की आंखों पर चश्मा क्यों नहीं है। तो उत्तर में पान वाले ने दुखी होकर कहा “साहब! कैप्टन मर गया।“ हालदार साहब उदास हो गए और वहाँ से चले गए। जाते-जाते वे सोच रहे थे कि क्या होगा उन लोगों का जो अपने लिए बिकने के मौके ढूंढते है और उन लोगों पर भी हँसते हैं जो अपनी जिंदगी, गृहस्थी व जवानी सब कुछ देश के नाम कर देते हैं।
पंद्रह दिनों बाद हालदार साहब उसी कस्बे से गुजरते हैं और यह सोचकर निकलते हैं कि वहाँ पर नहीं रुकेंगे लेकिन वहाँ से गुजरते समय वह कुछ ऐसा देखते हैं जिससे वह गाड़ी को एकदम से रुकवाकर मूर्ति की ओर जाकर अटेंशन में खड़े हो जाते हैं।।, मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा था, जिसे देखकर हालदार साहब की आँखे भर आईं।
नेता जी का चश्मा
- स्वयं प्रकाश जी
प्रस्तुत पंक्तियों को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए -
1.हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरना पड़ता था।
प्रश्न – 1 कस्बे की क्या क्या विशेषताएँ थी ?
उत्तर – कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। कुछ पक्के मकान और एक ही बाज़ार था। एक लड़कों का स्कूल व एक लड़कियों का स्कूल था। एक सीमेंट का कारखाना था और चौराहे पर नेता जी की संगमरमर की मूर्ति बनी हुई थी, जो नगरपालिका द्वारा बनवाई गई थी। नगरपालिका कभी-कभी कवि सम्मेलन भी करवा दिया करती थी।
प्रश्न – 2 ‘नगरपालिका भी कुछ-न-कुछ करती रहती थी’ - स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – उस कस्बे की एक नगरपालिका थी जो हमेशा कुछ-न-कुछ करती रहती थी ताकि लोग उन्हें गलत न समझें। इसके लिए कभी कोई सड़क पक्की करवा दिया करते थे या कभी कुछ शौचालय बनवा दिया करते थे। अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए वे कभी-कभी कवि सम्मेलन भी करा दिया करते थे। इसी नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार शहर के मुख्य बाज़ार में चौराहे पर नेता जी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी।
प्रश्न – 3 सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा किसने, कहाँ लगवाई? उसे बनाने का काम किसे सौंपा गया और क्यों ?
उत्तर - नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने शहर के मुख्य बाज़ार में चौराहे पर नेता जी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवाई। मूर्ति बनाने की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं ज़्यादा थी तथा शासनावधि समाप्त होने को थी। इसलिए उसे बनाने का काम कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी को सौंपा गया।
प्रश्न – 4 नेता जी की मूर्ति की क्या विशेषताएँ थी? मूर्ति में किस चीज की कमी थी ?
उत्तर - मूर्ति की विशेषता यह है कि वह संगमरमर की बनी थी तथा टोपी के नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची थी। मूर्ति बहुत सुंदर लगती थी जिसको देखकर ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ जैसे नारे याद आने लगते थे। केवल एक चीज की कसर थी नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं था।
2.क्या मतलब? क्यों चेंज कर देता है? हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाए?
प्रश्न - 1 पानवाले ने कैप्टन चश्मेवाले द्वारा नेता जी की मूर्ति का चश्मा चेंज करने के संबंध में क्या बताया?
उत्तर – पानवाले ने कैप्टन चश्मेवाले द्वारा नेता जी की मूर्ति का चश्मा चेंज करने के संबंध में यह बताया कि जब कैप्टन चश्मेवाले के यहाँ कोई ग्राहक आता है तो उसे वैसा ही फ्रेम वाला चश्मा चाहिए होता है जैसा मूर्ति पर होता है तो वह नेता जी की मूर्ति के ऊपर से चश्मा निकालकर ग्राहक को दे देता है और मूर्ति पर दूसरे फ्रेम का चश्मा लगा देता है जिससे मूर्ति बुरी न लगे।
प्रश्न - 2 पानवाले की बात सुनकर भी हालदार साहब को कौन-सी बात अभी भी समझ में नहीं आई?
उत्तर - पानवाले की बात सुनकर हालदार साहब को अभी भी यह समझ नहीं आया था कि नेताजी का असली चश्मा कहाँ है। इस पर पानवाला हालदार साहब को बताता है कि मास्टर चश्मा बनाना भूल गया था। फिर हालदार साहब को यह समझाया कि एक कैप्टन चश्मेवाला है जिसको नेताजी की बिना चश्मे के मूर्ति अच्छी नहीं लगती इसलिए वह बार-बार नेता जी की मूर्ति पर नया चश्मा लगा देता है।
प्रश्न – 3 पानवाले ने हालदार साहब की बात का क्या उत्तर दिया ? उसका उत्तर उसके लिए तथा हालदार साहब के लिए अलग-अलग किस प्रकार था ?
उत्तर - जब कैप्टन चश्मेवाले के यहाँ कोई ग्राहक आता है तो उसे वैसा ही फ्रेम वाला चश्मा चाहिए होता है जैसा मूर्ति पर होता है तो कैप्टन नेता जी की मूर्ति के ऊपर से चश्मा निकालकर ग्राहक को दे देता है और मूर्ति पर दूसरे फ्रेम का चश्मा लगा देता है। यह बात पान वाले के लिए तो एक मज़ेदार बात थी लेकिन हालदार साहब के लिए बहुत ही चकित और द्रवित करने वाली बात थी।
प्रश्न – 4 मूर्ति बनानेवाले के संबंध में हालदार साहब के मन में किस प्रकार का भाव जाग्रत हुए ?
उत्तर – हालदार साहब सोचने लगे कि बेचारे मास्टर मोतीलाल जी ने महीने-भर में मूर्ति बनाकर पटक देने का वादा किया होगा। बना भी ली होगी और असफल रहा होगा या बनाते-बनाते कुछ और बारीकी के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा।
3.‘नहीं साब, वो लंगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में ? पागल है, पागल। वो देखो वो आ रहा है। आप उसी से बात कर लो। फ़ोटो-वोटों छपवा दो उसका कहीं।'
प्रश्न – 1 हालदार साहब को पानवाले की कौन-सी बात अच्छी नहीं लगी और क्यों?
उत्तर – हालदार साहब को पानवाले का कैप्टन को पागल कहकर मजाक उड़ाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा क्योंकि कैप्टन चश्मेवाला बूढ़ा व लंगड़ा होकर भी पूरा देशभक्त था। खुद लंगड़ा होकर भी नेता जी को बुरा नहीं दिखाना चाहता था और इसके लिए को उनकी मूर्ति पर चश्मा लगाता था चाहे वह कैसा भी हो। मास्टर साहब ने तो मूर्ति बनाकर छोड़ दी लेकिन एक ज़रूरी बात भूल गए की मूर्ति पर चश्मा नहीं था, लेकिन कैप्टन कभी नहीं भूला।
प्रश्न – 2 सेनानी न होने पर भी चश्मेवाले को कैप्टन क्यों कहा जाता था? सोचकर लिखिए।
उत्तर – सेनानी ने होने पर भी चश्मे वाले को कैप्टन इसलिए कहा जाता था क्योंकि बूढ़ा व लंगड़ा होने पर भी उसने अपनी देशभक्ति नहीं छोड़ी। यदि किसी मनुष्य की आँखों पर चश्मा लगा रहता है और वह चश्मा उसकी मूर्ति पर न लगा हो तो हमें उसको देख कर अच्छा नहीं लगता यहाँ तो बात नेता जी की मूर्ति की थी इसलिए कैप्टन मूर्ति पर कोई न कोई चश्मा लगाकर रखता था ताकि नेता जी की मूर्ति अच्छी दिखाई दे।
प्रश्न – 3 चश्मेवाले को देखकर हालदार साहब अवाक् क्यों रह गए? चश्मेवाले का परिचय दीजिए।
उत्तर – कैप्टन चश्मे वाले को देखकर हालदार साहब अवाक् इसलिए रह गए क्योंकि वह एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लंगड़ा आदमी था। उसके सिर पर गांधी टोपी और आंखों पर काला चश्मा लगा रहता था। उस बेचारे की कोई दुकान भी नहीं थी। एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची थी और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टंगे हुए चश्मे लिए फेरी लगाता था।
प्रश्न – 4 हालदार साहब पानवाले से क्या पूछना चाहते थे और क्यों? पानवाले ने उनकी बात पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?
उत्तर – हालदार साहब कैप्टन चश्मेवाले की देशभक्ति की भावना देखकर बहुत प्रभावित थे इसलिए पानवाले से पूछना चाहते थे, चश्मेवाले को कैप्टन क्यों कहते हैं? उसका वास्तविक नाम क्या है? लेकिन पान वाले ने साफ बता दिया था कि वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं है।
4. ‘बार-बार सोचते, क्या होगा उस काम का, जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी, जवानी-जिंदगी सब कुछ होम कर देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूंढती है?’
प्रश्न – 1 उपर्युक्त कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – उपर्युक्त कथन से लेखक का आशय यह है कि जिन लोगों में सिर्फ स्वार्थ की भावना निहित है, भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और देशप्रेम की भावना नहीं है, वे लोग देश के निर्माण कार्यों में सहायता कैसे कर सकते हैं। ऐसे लोग उन लोगों पर हँसते हैं जिन्होंने ने अपना घर-गृहस्थी, जवानी, जिंदगी सब कुछ देश पर न्योछावर कर दिया।
प्रश्न – 2 हालदार साहब को कैप्टन चश्मेवाला देशभक्त क्यों लगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – हालदार साहब को कैप्टन चश्मेवाला देशभक्त इसलिए लगा क्योंकि उसने गरीब और अपाहिज होने के बाद भी नेता जी की मूर्ति पर चश्मा लगाया ताकि उनकी मूर्ति अच्छी दिखाई दे। उसने जीवन की अंत तक एक देशभक्त का जीवन व्यतीत किया।
प्रश्न – 3 पंद्रह दिन बाद जब हालदार साहब उस कस्बे से गुज़रे तो उनके मन में कौन-कौन सी विचार आ रहे थे?
उत्तर – पंद्रह दिन बाद जब हालदार साहब उस कस्बे से गुजरे तो उनके मन में यह विचार आ रहे थे कि चौराहे पर सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति होगी लेकिन उस पर चश्मा नहीं होगा क्योंकि मास्टर भूल गया और कैप्टन मर गया। उन्होंने सोचा कि उस दिन वह वहाँ नहीं रुकेंगे, पान नहीं खाएंगे और मूर्ति को नहीं देखेंगे लेकिन वे आदत से मजबूर थे और वहाँ से गुजरते ही उनकी नजर मूर्ति पर चली गई।
प्रश्न – 4 चौराहे पर रुकते हुए हालदार साहब क्या देखकर भावुक हो गए और क्यों?
उत्तर – चौराहे पर रुकते हुए हालदार साहब भावुक हो गए क्योंकि मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना चश्मा रखा हुआ था। वे सोच रहे थे की अब मूर्ति पर चश्मा नहीं होगा जिससे मूर्ति बुरी दिखाई देगी क्योंकि उस कस्बे में एक ही जो सच्चा देशभक्त था वह मर चुका था, लेकिन जब उन्होंने देखा कि मूर्ति पर चश्मा लगा है तो उनकी आँखे भर आईं क्योंकि उन्हें लगा चश्मेवाले की तरह कुछ और भी लोग देशभक्त हैं।