Tuesday, 27 May 2025

गिरिधर की कुंडलियाँ




गिरिधर की कुंडलियाँ
- गिरिधर कविराय

 निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

1. लाठी में गुण बहुत हैँ   ____________हाथ महँ लीजै लाठी।। 

प्रश्न – 1 गिरिधर कविराय ने लाठी के किन-किन गुणों की ओर संकेत किया है? 

उत्तर – कवि कहते हैं कि लाठी में बहुत गुण है,  इसलिए इसे हमेशा अपने साथ रखना चाहिए। यदि गहरी नदी या नाली हो तो यह न सिर्फ हमें गिरने से बचाती है, बल्कि लाठी के सहारे हम गहराई नाप कर उसे पार भी कर सकते है। मार्ग में कुत्ते से सामना हो तो लाठी द्वारा उससे रक्षा हो सकती है। लाठी से दुश्मन पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न – 2 लाठी हमारी किन-किन स्थितियों में सहायता करती है?

उत्तर – लाठी अनेक प्रकार से हमारी सहायता करती है।  नदी व नाली की गहराई नापने के काम आती है।  मार्ग में अगर कुत्ता झपट पड़े तो उससे बचाव हो सकता है और दुश्मन अगर आक्रमण करें तो लाठी उससे भी हमें बचा सकती है। 

प्रश्न  - 3 कवि सब हथियारों को छोड़कर अपने साथ लाठी रखने की बात कह रहे हैं। क्या आप उनकी बात से सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर – कवि  सब हथियारों को छोड़कर अपने साथ लाठी रखने की बात कह रहे हैं। हाँ, हम उनकी बातों से सहमत हैं क्योंकि लाठी घर के बाहर सब जगह रखी जा सकती है,  यह हथियार भी नहीं है जो इसे रखने पर पाबंदी होगी। यह हर प्रकार से मनुष्य की सच्ची दोस्त है, जो हर प्रकार के मनुष्य की रक्षा करती है।

प्रश्न – 4 शब्दार्थ लिखिए – नारी, दावागीर,  तिनहूँ,  छाँड़ि 

उत्तर –  नारी – नाली,    
             दावागीर – हमला, 
             तिनहूँ – उनके ,  
             छाँड़ि – छोड़कर


2. कमरी थोरे  दाम कि _____________ बड़ी मर्यादा कमरी।। 

प्रश्न – 1 छोटी-सी कमरी हमारे किस-किस काम आ सकती है? 

उत्तर – कवि के अनुसार काला कमरी( साधारण कंबल ) थोड़ी मूल्य में प्राप्त हो जाती है। इसके अनेक लाभ हैं जैसे कीमती कपड़ों को लपेट कर उन्हें कंबल में रखा जा सकता है क्योंकि यह कीमती कपड़ों को धूल व धूप से बचाता है, उनका मान रखता है। इसकी छोटी-सी गठरी बनाई जा सकती है। रात में कंबल को झाड़ कर बिछाया जा सकता है तथा उस पर आराम से सोया जा सकता है।

प्रश्न – 2 गिरिधर कविराय के अनुसार कमरी में कौन-कौन-सी विशेषताएँ होती हैं? 

उत्तर – कवि के अनुसार कंबल थोड़े से मूल्य में ही प्राप्त हो जाता है। इसके अनेक लाभ हैं।  उत्तम वे महंगे कपड़ों को लपेटकर कंबल में रखा जा सकता है,  जिससे उन कपड़ों पर धूल व धूप लगने से बचती है और उनका मान बना रहता है। इसकी छोटी-सी गठरी बनाई जा सकती है। रात में कंबल को झाड़ कर बिछाया जा सकता है और उस पर आराम से सोया जा सकता है, इसलिए इसे हमेशा साथ रखना चाहिए। 

प्रश्न – 3 ‘बकुचा बाँटे मोट, राति को झारि बिछाव’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर – इस पंक्ति द्वारा कवि कहना चाहते हैं कि इस कमरी के अनेक लाभ हैं। यह हमारे बहुत प्रकार से काम आती है। हम रात में कमरे को झाड़ कर उसे बिछा सकते हैं तथा उस पर आराम से सोया भी जा सकता है। इसी प्रकार ठंड लगने पर इसे ओढ़ा भी जा सकता है। 

 प्रश्न – 4  ‘खासा मलमल वाफ़्ता, उनकर राखै मान’ – पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं?  

उत्तर - उपर्युक्त पंक्ति द्वारा कवि बताते हैं कि खासा व मलमल और महंगे कपड़ों को कमरी धूप में धूल और पानी से बचाती है, उनका मान रखती है। अत: कंबल बहुत उपयोगी चीज़ है।


3. गुन के गाहक सहस  ________________ सहस नर गाहक गुन के।।

प्रश्न – 1 ‘गुन के गाहक सहस नर’ को स्पष्ट करने के लिए कविराय ने कौन-सा उदाहरण दिया है और क्यों? 

उत्तर – कवि के अनुसार संसार में सर्वत्र गुणी व्यक्ति का आदर व सम्मान होता है। गुणी व्यक्ति  को चाहने वाले हजारों होते हैं। ऐसे व्यक्ति को कोई नहीं पूछता, जिसमें कोई गुण न हो। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने गुणों का विकास करना चाहिए। कवि ने कौवा और कोयल का उदाहरण देकर भी समझाया है कि कौवा और कोयल दोनों का रंग काला होता है, किंतु कोयल को उसकी आवाज़ की वजह से पसंद किया जाता है और कौवे को उसकी कर्कश आवाज की वजह से कोई पसंद नहीं करता।

प्रश्न – 2 कागा और कोकिला में कौन-सी बात समान है और कौन- सी असमान?  स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर – कवि के अनुसार कागा और कोकिला दोनों का रंग काला होता है और दोनों समान आकर के भी होते हैं, किंतु कोयल को उसकी मधुर आवाज़ के कारण पसंद किया जाता है और कौवे को उसकी काँव-काँव की वजह से  कोई पसंद नहीं करता। 

प्रश्न – 3 बिनु गुन लहै न कोय,  सहस नर गाहक गुन के’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – कवि इस पंक्ति द्वारा कहते हैं कि समाज में केवल गुणों की सराहना की जाती है। गुणों का ही  आदर किया जाता है, रंग रूप आदि का नहीं।  बिना गुणों के किसी भी व्यक्ति का सम्मान नहीं होता और गुणी व्यक्ति को चाहने वाले हज़ारों होते हैं। 

प्रश्न – 4 उपर्युक्त कुंडलियों का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए तथा बताइए कि इस कुंडलियां द्वारा क्या संदेश दिया गया है? 

उत्तर – केंद्रीय भाव यह है कि गुणी व्यक्ति के हज़ारो प्रशंसक होते हैं एवं उसके गुणों की सरहाना की जाती है, इसलिए व्यक्ति को सदैव अपने गुणों का  विकास करने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। 


4. साईं सब _______________________ कोई साईं।। 

प्रश्न – 1 कवि के अनुसार इस संसार में किस प्रकार का व्यवहार प्रचलित है? 

उत्तर – कवि  के अनुसार इस संसार में सभी लोग मतलब से व्यवहार करते हैं,  मतलब से  ही संबंध बनाए रखते हैं और  जब मतलब सिद्ध हो जाता है तब संबंध समाप्त हो जाता है।  भाव यह है कि संसार में लगभग सभी व्यक्ति स्वार्थी हैं। जब तक किसी पर धन दौलत रुपया पैसा रहेगा उसके मित्र उसके चारों ओर बैठे रहेंगे और जब धन समाप्त हो जाता है तब मित्रता भी समाप्त हो जाती है। 

प्रश्न – 2 ‘साईं सब संसार में’ - शीर्षक कुंडलिया से मिलने वाले संदेश पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर - 'साईं इस संसार में’ नामक शीर्षक कुंडली से संदेश मिलता है कि दुनिया में रहने वाले सभी व्यक्ति स्वार्थी एवं मतलबी होते हैं।  जब तक उनका मतलब सिद्ध होता है तब तक व्यक्ति के साथ संबंध बना रहता है और जब मतलब खत्म हो जाता है तो संबंध भी समाप्त हो जाता है। 

प्रश्न – 3 उपर्युक्त कुंडलिया में  सच्चे एवं झूठे मित्र की क्या पहचान बताई गई है? 

उत्तर – उपर्युक्त कुंडलिया में बताया गया है कि सच्चा मित्र विपरीत परिस्थितियों में भी कभी साथ नहीं छोड़ता,  परंतु झूठा मित्र सुख में तो हरदम साथ रहता है और दुख पड़ने पर मित्र को भूल जाता है।  सच्ची मित्रता मरते दम तक साथ रहती है,  परंतु झूठी मित्रता चार दिन की चांदनी के बाद समाप्त हो जाती है। 

प्रश्न - 4 उपर्युक्त कुंडलिया का प्रतिपाद्य लिखिए। 

उत्तर - प्रस्तुत कुंडलिया  में कवि ने इस बात पर बल दिया है कि हमें मित्रों का चयन बहुत सोच समझ कर करना चाहिए क्योंकि इस संसार में बहुत से स्वार्थी लोग भरे हैं जो हमारे अच्छे समय में तो हमारे साथ रहते हैं किंतु बुरे वक्त में हम से दूरी बना लेते हैं और सीधे मुंह बात भी नहीं करते। अतः संसार का यही व्यवहार है,  यही रीति है और यहाँ का व्यवहार स्वार्थ पर आधारित है। 


5. रहिए लटपट ______________________ छाया में रहिए।। 

प्रश्न  – 1 कवि के अनुसार हमें किस प्रकार के पेड़ की छाया में बैठना चाहिए और क्यों? 

उत्तर – कवि के अनुसार हमें मजबूत पेड़ की छाया में ही बैठना चाहिए क्योंकि आँधी  या तूफ़ान आने पर  उसके पत्ते तो झड़ सकते हैं किंतु तना और डालियाँ सुरक्षित रहेंगी। अतः मनुष्य को भी किसी बलवान व्यक्ति के साथ ही संगत करनी चाहिए क्योंकि वह खुद को भी सुरक्षित रखता है और अपने पास आए व्यक्ति को भी सुरक्षित रख सकता है। 

प्रश्न – 2 ‘छाँह मोटे की गहिए’ – पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं? 

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति द्वारा गिरिधर कविराय जी हमें मोटे तने वाले पेड़ की छाँव में बैठने की सलाह दे रहे हैं क्योंकि तूफान व आँधी आने पर उसके पत्ते तो झड़ सकते हैं,  किंतु उसका तना व डालियाँ सुरक्षित रहती हैं। अतः मनुष्य को किसी अनुभवी व मजबूत व्यक्ति के साथ संगत करनी चाहिए क्योंकि विपत्ति आने पर वह स्वयं को भी संभाल सकता है और अपने संगी साथी को भी। 

प्रश्न – 3 उपर्युक्त कुंडलियां द्वारा कवि क्या संदेश दे रहे हैं? 

उत्तर – उपर्युक्त कुंडली द्वारा कविराय पेड़ के माध्यम से यह संदेश दे रहे हैं कि हमें समर्थ एवं अनुभवी व्यक्ति का सहारा लेना चाहिए निर्बल का नहीं।  निर्बल व्यक्ति न अपनी सुरक्षा कर सकता है न ही दूसरे की जबकि सबल व्यक्ति स्वयं भी सुरक्षित रहता है और अपने पास आए व्यक्ति को भी सुरक्षित रख सकता है। 

प्रश्न – 4 कवि के अनुसार एक दिन कौन धोखा देगा तथा कब ? उससे बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए? 

उत्तर – कवि के अनुसार जिस प्रकार आँधी व तूफ़ान में पतले तने वाला पेड़ और कमजोर डालियाँ  टूट जाती हैं उसी प्रकार विपत्ति आने पर कमजोर व्यक्ति भी धोखा दे देता है। अतः ऐसे धोखे से बचने के लिए मजबूत एवं अनुभवी व्यक्ति के साथ रहना चाहिए। 


6. पानी बाढ़ै नाव में  _____________________  राखिये अपना पानी।। 

प्रश्न – 1 ‘दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानों काम’ – पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति द्वारा कविराय जी कहते हैं कि यदि नाव में ज्यादा पानी आ जाए या घर में धन बढ़ जाए तो हमें दोनों हाथों से उसे निकालकर परोपकारी कार्यों में लगाना चाहिए। यही बुद्धिमानी का काम है। अतः हमें सबका परोपकार करना चाहिए।

प्रश्न – 2 ‘पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै’ – पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहते हैं कि अगर कभी जीवन में किसी का परोपकार करने के लिए हमें शीश का बलिदान भी देना पड़े तो हमें अवश्य शीश को अर्पित कर देना चाहिए। अर्थात् दूसरों के भले के लिए हमें प्रभु का नाम स्मरण करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे देना चाहिए।

प्रश्न – 3 उपर्युक्त कुंडलिया में ‘बड़ों की किस वाणी’ की चर्चा की गई हैं तथा क्यों? 

उत्तर – उपर्युक्त कुंडलियां में बड़े बुजुर्गों ने यह सीख दी है कि हमें हमेशा अच्छे ढंग से जीवन यापन करना चाहिए और सही मार्ग पर चलते हुए अपने सम्मान को बनाए रखना चाहिए। बड़े बुजुर्गों ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि सही मार्ग पर चलने से ही हम अपने सम्मान की रक्षा कर सकते हैं।

प्रश्न – 4 उपर्युक्त कुंडलिया का प्रतिपाद्य लिखिए। 

उत्तर – उपर्युक्त कुंडलिया का प्रतिपाद्य यह है कि जब नाव में अधिक पानी भर जाए या घर में अधिक धन हो जाए तो हमें उसका प्रयोग खुशी से दूसरे के भले के लिए परोपकारी कार्यों में करना चाहिए।


7. राजा के दरबार में  ____________________  बहुरि अनखैहैं राजा।। 

प्रश्न – 1 राजा के दरबार में कब जाना चाहिए,  कहाँ नहीं बैठना चाहिए और क्यों? 

उत्तर – व्यवहार कुशलता के विषय में बताते हुए कविराय जी ने बताया है कि हमें अवसर पाकर ही राजा के दरबार में जाना चाहिए और अपने स्तर के अनुसार ही स्थान ग्रहण करना चाहिए। हमें ऐसे स्थान पर नहीं बैठना चाहिए जो हमारे स्तर के अनुसार नए हो क्योंकि ऐसे स्थान पर बैठने से हमें कोई भी वहाँ से उठा सकता है।

प्रश्न – 2 कवि ने दरबार में कब बोलने और कब न बोलने की सलाह दी है? 

उत्तर – गिरिधर कविराय जी ने यह सलाह दी है कि राजा के दरबार में जब कुछ बोलने को कहा जाए तभी राजा के समक्ष अपने विचार प्रस्तुत करने चाहिए। बोलते समय संयम बरतना चाहिए तथा अधिक उतावला नहीं होना चाहिए। जब तक बोलने के लिए कुछ कहा न जाए तब तक चुप ही रहना चाहिए। यही व्यवहार की कुशलता है।

प्रश्न – 3 ‘हँसिये नहीं हहाय, बात पूछे ते कहिए’ – पंक्ति द्वारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहते हैं? 

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से गिरिधर कविराय जी कहना चाहते हैं कि राजा के दरबार में ज़ोर–ज़ोर से नहीं हँसना चाहिए। बोलने के लिए उतावला नहीं होना चाहिए और जब कुछ पूछा जाए तभी बोलना चाहिए।

प्रश्न – 4 उपर्युक्त कुंडलिया से क्या शिक्षा मिलती है? 

उत्तर – उपर्युक्त कुंडली से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी प्रकार की सभा में अपने स्तर के अनुकूल स्थान ग्रहण करना चाहिए, सभा में कभी भी ज़ोर-ज़ोर से नहीं हँसना चाहिए, बोलने के लिए उतावला नहीं होना चाहिए और जब बोलने के लिए कहा जाए तभी बोलना चाहिए। 

Monday, 5 May 2025

Class 8 संस्कृत CH 2 Pratham kuuph

सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा राज्य था। एक बार गर्मियों में भयंकर गर्मी पड़ी और वर्षा नहीं हुई। सरोवर सूख गया। लोग चिंतित हो गए। वे सभी राजा के पास गए।

किसानों और मछुआरों ने कहा, "लंबे समय से वर्षा नहीं हुई। हमारे खेत सूख गए हैं। सरोवर में मछली पकड़ने के लिए मछलियाँ नहीं हैं। हम अपनी आजीविका कैसे चलाएँगे? हे राजन, हमारी रक्षा करें।

जल की खोज के लिए राजा ने चारों दिशाओं में चार कुशल सेनापतियों को भेजा। उन्होंने दिन-रात जल की खोज की। उनमें से तीन सेनापति खाली हाथ नगर लौट आए।जो सेनापति उत्तर दिशा में गया, उसने सोचा, "मुझे किसी भी तरह जल की खोज करनी होगी। यह मेरा कर्तव्य है।" वह आगे बढ़ता गया। अंततः उसे पर्वत पर एक ठंडा गाँव मिला। जब वह पर्वत की घाटी में बैठा, तब एक वृद्धा वहाँ आई और उसके पास बैठ गई।


सेनापति ने कहा, "मैं एक सुंदर राज्य से आया हूँ, जहाँ पूरे वर्ष वर्षा नहीं हुई। क्या तुम जल खोजने में मेरी सहायता करोगी?"वह महिला सेनापति का अनुसरण करने को तैयार हो गई और उसे एक पर्वत गुफा में ले गई। उसने गुफा में हिमशंकु दिखाते हुए कहा, "यह हिम है। इसे ले लो। तुम्हारा देश कभी प्यासा नहीं रहेगा।"सेनापति ने एक बड़ा हिमखंड तोड़ा और उसे अपने रथ में रखा। वह तेजी से घर की ओर लौटा। जब तक वह नगर पहुँचा, तब तक वह विशाल हिमशंकु छोटा हो गया था।

सभी आश्चर्य से उस हिमखंड को देख रहे थे। "यह जल-बीज हो सकता है," एक मंत्री ने अचानक कहा।राजा ने जल-बीज को शीघ्र बोने का आदेश दिया। जब किसानों ने गड्ढा खोदा, तो हिमखंड और अधिक पिघल गया।उन्होंने जल्दी से उस बीज को गड्ढे में रखा, लेकिन उसे ढकने से पहले ही वह बीज अदृश्य हो गया। उन्होंने उस गड्ढे को और गहरा, रात तक खोदा और उस विचित्र बीज की खोज की।सेनापति ने कहा, "मैं एक सुंदर राज्य से आया हूँ, जहाँ पूरे वर्ष वर्षा नहीं हुई। क्या तुम जल खोजने में मेरी सहायता करोगी?"वह महिला सेनापति का अनुसरण करने को तैयार हो गई और उसे एक पर्वत गुफा में ले गई। उसने गुफा में हिमशंकु दिखाते हुए कहा, "यह हिम है। इसे ले लो। तुम्हारा देश कभी प्यासा नहीं रहेगा।"सेनापति ने एक बड़ा हिमखंड तोड़ा और उसे अपनी रथ में रखा। वह तेजी से घर की ओर लौटा। जब तक वह नगर पहुँचा, तब तक वह विशाल हिमशंकु छोटा हो गया था।
सुबह राजा ने गड्ढे में देखा। चकित होकर उसने जोर से कहा, "जागो, मेरी प्रजा! जल-बीज अंकुरित हो गया है। गड्ढे में जल है।" इस प्रकार पहला कुआँ बनाया गया।

Monday, 28 April 2025

Ch 2 Sanskrit class 7

Deepak Sir
 हमारा राष्ट्र भारतवर्ष है। प्राचीन काल में अंग्रेजों ने यहाँ शासन किया। हमारे देश में स्वतंत्रता के लिए अनेक आंदोलन हुए। स्वतंत्रता के लिए देशभक्तों ने धन दिया। युवाओं ने अपने प्राण त्याग दिए। देशभक्तों में लक्ष्मीबाई एक प्रमुख सेनानायिका थीं। उनके पिता और माता बिठूर राज्य में रहते थे। लक्ष्मीबाई शस्त्रज्ञान और अश्वारोहण में निपुण थीं। उनका विवाह गंगाधर के साथ हुआ। अंग्रेज सेनानायक ह्यूरोज ने उनसे आत्मसमर्पण करने को कहा। वीरांगना लक्ष्मीबाई ने कहा, "भारतीय नारी अपने प्राण त्याग देती है, लेकिन शत्रु के सामने समर्पण नहीं करती। झाँसी राज्य मेरा है। मैं झाँसी राज्य नहीं दूँगी।"

सरोजिनी नायडू स्वतंत्रता संग्राम की वीरनायिका थीं।
वह कवयित्री भी थीं।
उनका जन्म हैदराबाद नगर में हुआ था।
वह महात्मा गांधी की परम शिष्या थीं।
उन्होंने गाँव-गाँव जाकर स्वतंत्रता के लिए कार्य किया।

कस्तूरबा और कमला नेहरू ने भी स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह किया।
वे कारागार भी गईं।
उन्होंने असहयोग आंदोलन में मदिरा और विदेशी वस्त्रों का विरोध किया।
उन्होंने अपने पति के कार्य में सहायता की।

रानी चेन्नमा,  रानी वेलु नचियार और भीमाबाई होलकर राजपरिवार की महिलाएँ थीं।
उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के प्रारंभिक काल में कार्य किया।
उन्होंने सशस्त्र युद्ध किया।
उन्होंने अंग्रेजों को कई बार पराजित किया।

Nav Sanskrit Class 8 Ch 1 Explanation

संस्कृत कक्षा 8 पाठ - 1
हिंदी अनुवाद

(आठवीं कक्षा। उत्सव का वातावरण। कक्षा के एक कोने में भगवान श्रीगणेश की भव्य सुसज्जित मूर्ति है। छात्र एकत्रित होकर प्रार्थना करते हैं।) वक्रतुण्ड! महाकाय! सूर्यकोटिसमप्रभ! निर्विघ्नं कुरु मे देव! सर्वकार्येषु सर्वदा।।(प्रार्थना के बाद प्रसन्न छात्र आपस में बातचीत करते हैं। तभी आचार्य कक्षा में प्रवेश करते हैं।)

सभी छात्र:(खड़े होकर हाथ जोड़कर) – नमस्ते आचार्य! आपको गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ।

आचार्य: शुभ हो। धन्यवाद! गणेशोत्सव की आप सभी को बधाइयाँ। कृपया बैठ जाएँ।

सभी छात्र: धन्यवाद, आचार्य।

गोपाल: (कक्षा का छात्रप्रमुख) आचार्य, आज से इस उत्सव का आरंभ होगा। अतः हम इस विषय में कुछ विशेष जानना चाहते हैं।

आचार्य: ठीक है। सबसे पहले कोई यह बताए कि आज कौन सी तिथि है?

जया: हाँ, आचार्य। मैं जानती हूँ। आज भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि है।

आचार्य: बहुत अच्छे। शिवपुराण की कथा के अनुसार, इसी तिथि को भगवान श्रीगणेश का आविर्भाव हुआ था। इसलिए हम उनके जन्मदिवस को गणेश चतुर्थी के रूप में श्रद्धा के साथ मनाते हैं।

गिरिजा : महोदय! तो फिर वह कथा सुनाइए।

आचार्य: (हल्के से हँसते हुए) – ठीक है। ध्यान और शांति के साथ सुनो। पुराने समय में एक समस्या के समाधान के लिए देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। उस समय श्रीगणेश अपने बड़े भाई कार्तिकेय के साथ वहाँ बैठे थे। देवताओं के कष्ट को दूर करने के लिए भगवान शिव ने दोनों महावीरों, गणेश और कार्तिकेय, से पूछा, “तुम दोनों में से कौन देवताओं के कष्ट को शीघ्र दूर करने में सक्षम है?” दोनों ने ही उत्साहपूर्वक कहा, ‘मैं सक्षम हूँ।‘ भगवान शिव ने कहा, “तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, वही इस कार्य के लिए नियुक्त होगा। “यह सुनकर कार्तिकेय ने तुरंत अपने वाहन मयूर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए प्रस्थान किया। अब बाल गणेश ने सोचा, ‘मैं अपने वाहन मूषक के साथ इतने कम समय में पृथ्वी की परिक्रमा कैसे करूँगा?’
कुछ सोचकर गणेश ने तुरंत अपने माता-पिता, शिव और पार्वती, की सात बार प्रदक्षिणा की और उन्हें प्रणाम किया।कुछ समय बाद, पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे कार्तिकेय ने पूछा, “गणेश ने परिक्रमा क्यों नहीं की?” श्रीगणेश ने कहा, “माता और पिता के चरणों में ही समस्त लोक समाहित हैं। इसलिए मैंने केवल उनकी ही परिक्रमा की।“गणेश के इस बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर को सुनकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने गणेश को देवताओं के संकट निवारण के लिए नियुक्त किया।

सभी छात्र: (प्रसन्न मुद्रा में) आचार्य, इस कथा से हमारी जिज्ञासा शांत हुई और ज्ञानवर्धन भी हुआ। इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

आरिफ: आचार्य, मेरे मन में एक प्रश्न है कि श्रीगणेश का रूप इतना भिन्न क्यों है? जैसे मूषक जैसा छोटा वाहन, लंबा पेट, छोटी आँखें, बड़े कान इत्यादि।

आचार्य: वत्स, यह सब प्रतीकात्मक है। इससे हमें जीवन के लिए सकारात्मक संदेश मिलते हैं। जैसे- उनका स्थूल शरीर यह बताता है कि धीरे-धीरे चलो, लेकिन अपने लक्ष्य को कभी न भूलो। उनकी थोड़ी टेढ़ी सूंड यह दर्शाती है कि ‘सफलता का मार्ग आसान नहीं होता।‘ बड़े कान यह कहते हैं कि हमें सब कुछ सुनना चाहिए। छोटी आँखें सूक्ष्म दृष्टि की सूचक हैं। अतः जीवन में मनुष्य हमेशा सकारात्मक रहे, यही भगवान श्रीगणेश का जीवन संदेश है।(तभी घंटी बजती है।)

सभी छात्र: (खड़े होकर हाथ जोड़ते हुए) धन्यवाद, आचार्य। हम जीवन में इन संदेशों को कभी नहीं भूलेंगे। श्रीगणेश की तरह विघ्नों और कष्टों को अनदेखा कर प्रगति के पथ पर चलेंगे। (उच्च स्वर में) ॐ श्रीगणेशाय नमः।
आचार्य: तुम्हारे मार्ग शुभ हों।

Monday, 4 November 2024

वह जन्मभूमि मेरी


वह जन्मभूमि मेरी
कवि - सोहनलाल द्विवेदी 

पद्यांशों के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए – 

1. ऊँचा खड़ा हिमालय, आकाश चूमता है,  _ _ _ _ _ _ _ _ वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।। 

प्रश्न – 1 उपर्युक्त पंक्तियाँ किस कविता से ली गई हैं?  उसके रचयिता कौन हैं?  कवि ने भारत की उत्तर तथा दक्षिण दिशाओं की किस-किस विशेषता का वर्णन किया है?

उत्तर – उपर्युक्त पंक्तियाँ ‘वह जन्मभूमि मेरी’ नामक कविता से ली गईं हैं। इसके रचयिता ‘सोहनलाल द्विवेदी’ जी हैं। कवि ने भारत के उत्तर में स्थित हिमालय का वर्णन किया है,  जिसकी ऊँचाई मानो आकाश को छू रही हो और भारत के दक्षिण में स्थित हिंद महासागर का वर्णन किया है जिसको देखकर ऐसा लगता है मानो वह भारत के पैरों के नीचे निरंतर झूमता रहता है। 

प्रश्न – 2 कवि ने ‘त्रिवेणी’ शब्द का प्रयोग किस लिए किया है? त्रिवेणी कहाँ है तथा वहाँ  कौन-कौन-सी नदियाँ आकर मिलती हैं? 

उत्तर – उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जिस स्थान पर गंगा,  यमुना और सरस्वती – इन तीनों नदियों का संगम होता हैं,  उसे ‘त्रिवेणी’ कहा जाता है। 

प्रश्न – 3 कवि ने भारत को ‘पुण्यभूमि’ और ‘स्वर्णभूमि’ के विशेषणों से क्यों संबोधित किया है?  

उत्तर – कवि ने भारत को पुण्यभूमि इसलिए कहा है क्योंकि वे भारत के प्राकृतिक सौंदर्य और उसकी महानता से अत्यंत प्रभावित हैं। उनके अनुसार भारत के उत्तर में फैले हिमालय पर्वत की ऊँचाई, भारत के पैरों में झूमता हिंद महासागर और गंगा,  यमुना और सरस्वती जैसी नदियाँ इसे महान बनाते हैं। कवि ने भारत को स्वर्णभूमि इसलिए कहा है क्योंकि जहां की भूमि में मिट्टी अत्यंत उर्वरा है, यहाँ खूब फसलें होती हैं जो माता पिता के समान हमारा पालन-पोषण करती है। 

प्रश्न – 4 कवि ‘हिमालय’ और ‘सिंधु’ के संबंध में क्या कल्पना करता है? 

उत्तर – कवि ने हिमालय और सिंधु के संबंध में कल्पना की है कि हिमालय को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो वह  आकाश को छू रहा हो। भारत के दक्षिण में स्थित सिंधु अर्थात हिंद महासागर को देखकर ऐसा लगता है की वह भारत के पैरों के नीचे निरंतर झूमता रहता हो। 

2. झरने अनेक झरते, जिसकी पहाड़ियों में, _ _ _ _ _ _ _ _ वह जन्मभूमि मेरी,  वह मातृभूमि मेरी।। 

प्रश्न – 1 उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर भारत-भूमि के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कीजिए। 

उत्तर – भारत भूमि के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि भारतवर्ष की पहाड़ियों से अनेक झरने निकलते हैं और यहाँ की झाड़ियों में चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई पड़ती है। यहाँ पर जगह-जगह आम के बाग है,  जिसमें सुबह-सुबह कोयल की मधुर आवाज़ सुनाई पड़ती है और मलयाचल पर्वत से आती हुई शीतल मंद और सुगंधित हवा सभी को प्रसन्नता से भर देती है। 

प्रश्न – 2 भारत – भूमि  की पहाड़ियों,  अमराइयों और पवन की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? 

उत्तर – भारत की पहाड़ियों की विशेषता यह है कि उनमें से अनेक झरने निकलते हैं। अमराइयों की विशेषता यह है कि वसंत ऋतु में उसमें से कोयल की कूक सुनाई पड़ती है और मलयाचल पर्वत से आती हुई शीतल मंद और सुगंधित पवन सभी को प्रसन्नता से भर देती है। 

प्रश्न – 3 कवि ने भारत-भूमि को ‘धर्मभूमि’ और ‘कर्मभूमि’ कहकर क्यों संबोधित किया है? 

उत्तर – कवि ने भारत भूमि को धर्म भूमि इसलिए कहा है क्योंकि यहाँ धर्म का बोलबाला है अर्थात यहाँ  के निवासी धर्म में आस्था रखते हैं और कभी ने भारत भूमि को कर्मभूमि इसलिए कहा है क्योंकि यह हमें कर्म करने की प्रेरणा देती है। दक्षिण भारत के पहाड़ों से आने वाली हवा सभी को उल्लासित करती है। 

प्रश्न – 4 उपर्युक्त पंक्तियों का प्रतिपाद्य लिखिए। 

उत्तर – उपर्युक्त पंक्तियों का प्रतिपाद्य यह है कि हमारी भारत भूमि की अनेक प्राकृतिक विशेषताएं हैं। जहाँ पर पहाड़ियों से झरने निकलते हैं, झाड़ियों से चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई पड़ती है और जगह जगह पर आम के बाग हैं जिनमें से वसंत ऋतु में कोयल की कूक सुनाई पड़ती है। भारत भूमि में धर्म का बोलबाला है इसलिए इसे धर्मभूमि कहा गया है अतः यह भूमि हमें कर्म करने की प्रेरणा देती है इसलिए इसे कर्मभूमि भी कहा गया है। 

3. जन्मे जहाँ थे रघुपति,  जन्मी जहाँ थी सीता, _ _ _ _ _ _ _ _ वह जन्मभूमि मेरी, वह मातृभूमि मेरी।। 

प्रश्न – 1 ‘गीता का उपदेश किसने, किसे, कब और कहाँ दिया था? इस उपदेश का क्या प्रभाव पड़ा? 

उत्तर – गीता का उपदेश श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के युद्ध के समय कुरुक्षेत्र में दिया। श्री कृष्ण ने उपदेश देकर अर्जुन को युद्ध के लिए प्रवृत्त किया था। श्री कृष्ण रणभूमि में अर्जुन को जीवन की वास्तविकता और मनुष्य धर्म से जुड़े कुछ ऐसे उपदेश दिए जिससे उनका मानसिक द्वंद समाप्त हो गया। 

प्रश्न – 2 ‘जग को दया दिखाई, जग को दिया दिखाया।’ - पंक्ति का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि किसने जन्म लेकर भारत का सुयश किस प्रकार बढ़ाया? 

उत्तर – उपर्युक्त पंक्ति के माध्यम से कवि कह रहे हैं कि भारत की पवित्र भूमि पर ही गौतम बुध का जन्म हुआ था जिन्होंने अपने देश का सुयश दूर-दूर तक फैलाया।  गौतम बुद्ध ने अहिंसा का संदेश दिया, दया  का मार्ग दिखाया और ज्ञान का दीपक दिखाकर सभी को सही मार्ग दिखाया जो भारत में नहीं अन्य देशों में भी फैल गया। 

प्रश्न – 3 कवि ने भारत-भूमि को ‘युद्धभूमि’ और ‘बुद्धभूमि’ कहकर संबोधित क्यों किया है? 

उत्तर – कवि ने भारत-भूमि को युद्धभूमि इसलिए कहा है क्योंकि यहाँ बहुत से महायुद्ध हुए जिसमे इस भूमि के वीरों ने अपने सम्मान और भूमि की रक्षा की।  कवि ने भारत-भूमि को बुद्ध को में कहकर भी संबोधित किया है क्योंकि इस भूमि पर गौतम बुद्ध ने जन्म लिया और समस्त संसार को दया और अहिंसा का संदेश दिया। 

प्रश्न – 4 उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवि ने क्या संदेश दिया हैं? 

उत्तर – उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कवि ने मातृभूमि के प्रति सम्मान जगाते हुए और भारत-भूमि की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि हमें इस भारत-भूमि पर जन्मे श्री राम और सीता के गुणों को अपनाकर अपने आचरण में बदलाव करना चाहिए एवं कवि  ने श्री कृष्ण के उपदेश के माध्यम से जीवन की वास्तविकता और मनुष्य धर्म से जुड़ने का संदेश दिया है। अंत में कवि ने गौतम बुध के माध्यम से अहिंसा और दया के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है। 

Sunday, 26 May 2024

विनय के पद


विनय के पद  
लेखक – तुलसीदास 

 निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए – 

1. ऐसो को उदार जग माहीं । _ _ _ _ _ _ कृपानिधि तेरो ।। 

प्रश्न 1. ‘ऐसो को उदार जग माहीं’ – पंक्ति के आधार पर किसकी उदारता की बात की जा रही है उनकी उदारता की क्या विशेषताएँ हैं?

उत्तर – पंक्ति के आधार पर राम की उदारता के बात की जा रही है। उनकी उदारता की यह विशेषता है कि वह दीन दुखियों पर बिना उनकी  सेवा के  ही दया करते हैं । भाव यह है कि श्री राम दीन दुखियों पर उनके द्वारा सेवा किए जाने के बिना ही कृपा करते हैं । अतः राम के समान उदार व्यक्ति की संपूर्ण संसार में कोई नहीं है।

प्रश्न 2. ‘गीध’ और ‘सबरी’ कौन थे? राम ने उन्हें कब, कौन-सी गति प्रदान की?

उत्तर – गीध से कवि का संकेत गीद्धराज जटायु से है तथा सबरी का अर्थ शबर जाति की एक महिला है, जो श्री राम की परम भक्त थी । जब गीद्धराज जटायु रावण के साथ युद्ध में बुरी तरह घायल होकर गिर पड़े, तो भगवान श्री राम ने उसे मुक्ति प्रदान की। इसी प्रकार श्री राम ने सबरी महिला को सद्गति प्रदान की।

प्रश्न 3. रावण ने कौन-सी संपत्ति किससे तथा किस प्रकार प्राप्त की थी? वह संपत्ति विभीषण को देते समय राम के हृदय में कौन-सा भाव था?

उत्तर  - रावण ने अपने दस सिर शिव जी को चढ़ाकर उनसे अनेक वरदान एवं लंका की संपत्ति प्राप्त की तथा उसी संपत्ति को भगवान श्रीराम ने अत्यंत संकोच के साथ उसे विभीषण को प्रदान किया।

प्रश्न 4. तुलसीदास जी सब प्रकार के सुख प्राप्त करने के लिए किसका वजन करने को कह रहे हैं और क्यों?

उत्तर – तुलसीदास कहते हैं कि यदि हम सब प्रकार के सुख को भोगना चाहते हैं, तब हमें भगवान श्री राम का भजन करना चाहिए क्योंकि इन सभी सुखों की प्राप्ति भगवान राम की कृपा से ही संभव है। वे ज्ञान के, कृपा के सागर है, अतः वे ही हमारी सभी प्रकार की इच्छा पूर्ति कर सकते हैं।

2. जाके प्रिय न राम वैदेही । _ _ _ _ _ _ जासों होय सनेह राम-पद, ऐतो मतो  हमारो ।।

प्रश्न 1. तुलसीदास किन्हें  तथा क्यों त्यागने को कह रहे हैं? 

उत्तर - तुलसीदास भगवान श्रीराम और माता सीता के विरोधी को त्यागने के लिए कह रहे हैं, अर्थात हमें उन व्यक्ति के साथ संबंध नहीं रखना चाहिए जो श्रीराम और माता  सीता से प्रेम नहीं करते, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों के साथ संबंध रखने से हमें केवल दुख और क्षति ही प्राप्त होती है।

प्रश्न 2. उपर्युक्त पद के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि किस-किस ने अपने किस-किस प्रयोजन को क्यों छोड़ दिया?

उत्तर – उपर्युक्त पद के अनुसार प्रह्लाद ने प्रभु राम  का विरोध करने वाले अपने पिता हिरण्यकशिपु  का त्याग किया, विभीषण ने श्री राम के विरोधी अपने भाई रावण का परित्याग कर दिया, भरत ने श्री राम को वनवास दिलाने वाली अपनी माता के कई का त्याग किया और राजा बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य को छोड़ दिया।

प्रश्न 3. ‘अंजन कहा आँख जेहि फूटै’ – पंक्ति द्वारा तुलसीदास क्या सिद्ध करना चाहते हैं?

उत्तर – उपर्युक्त पंक्ति द्वारा तुलसीदास यह सिद्ध करना चाहते  हैं कि हमें उन व्यक्तियों का सदा त्याग करना चाहिए जो राम सीता के से प्रेम नहीं करते। कवि कहते हैं कि ऐसे सुरमें या काजल को आँख में लगाने से क्या लाभ जिसका प्रयोग करने पर आँखे फूट जाए। अतः हमें ऐसे काजल रूपी व्यक्ति का   त्याग कर देना चाहिए।

प्रश्न 4. बलि के गुरु कौन थे? बलि ने अपने गुरु  का परित्याग कब तथा क्यों कर दिया? 

उत्तर – बलि के गुरु शुक्राचार्य थे जब गुरु शुक्राचार्य को ज्ञात हुआ कि वामन अवतार में स्वयं भगवान विष्णु ने  ही राजा बलि से तीन पग भूमि की मांग की है तब गुरु ने बलि को सचेत किया और भूमि न देने का आग्रह किया तभी राजा बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य को त्याग कर अपने प्रभु के प्रति भक्ति व शुद्ध प्रेम का प्रमाण दिया।

Tuesday, 30 April 2024

काकी

काकी
लेखक - सियारामशरण गुप्त 

1. "वर्षा के अनंतर एक-दो दिन में ही पृथ्वी के ऊपर का पानी तो अगोचर हो जाता है परंतु भीतर ही भीतर उसकी आदत आदत जैसे बहुत दिन तक बनी रहती है वैसी ही उसके अंतस्तल में वह शोक जाकर बस गया था।"

प्रश्न - 1 'उसके' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है? उसकी मनोदशा पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- 'उसके' शब्द का प्रयोग श्यामू के लिए किया गया है। जिस प्रकार वर्षा के बाद वर्षा का पानी धरती के ऊपर से एक-दो दिन में सूख जाता है परंतु उसकी नमी अंदर कई दिन तक बनी रहती है। उसी प्रकार काकी की मृत्यु के बाद श्यामू बाहर से तो शांत रहने लगा था परंतु उसके अंतस्थल में वह शोक जाकर बस गया था। वह उदास रहने लगा था और काकी को याद करके अकेला बैठा- बैठा शून्य मन से आकाश की ओर देखता रहता था।।

प्रश्न - 2 'असत्य के आवरण मे सत्य बहुत दिन तक छिपा ना रह सका'- श्यामू को किस सत्य का, कैसे पता चला ? इससे उस पर क्या प्रभाव पड़ा ? 

उत्तर - श्यामू को उसकी माँ के सत्य के बारे में सच पता चला कि उसकी माँ मामा जी के पास नहीं राम जी के पास गई है। यह बात उसे अपने पड़ोस में रहने वाले दोस्तों द्वारा पता चली और वह कभी वापस नहीं आएगी तो वह बहुत उदास रहने लगा। वह अपनी माँ को याद कर के कोने में चुपचाप बैठ कर अंदर ही अंदर बहुत दुखी होता था।

प्रश्न - 3 ‘काकी’ कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। 

उत्तर - इस कहानी में अत्यंत मार्मिक ढंग से एक अबोध तथा मासूम बालक की मातृ-वियोग की पीड़ा को व्यक्त किया गया है। कहानीकार ने यह चित्रित किया है कि बालकों का हृदय अत्यंत कोमल, भावुक तथा संवेदनशील होता है ।बच्चे मातृ वियोग का पीड़ा सहन नहीं कर पाते।

प्रश्न - 4 'काकी ' शीर्षक कहानी से बालकों के किस स्वभाव का पता चलता है ?

उत्तर - "काकी "शीर्षक कहानी से बालकों के कोमल मन, भावुकता और उनकी संवेदनशीलता के बारे में पता चलता है। वे अपने मातृ वियोग की पीड़ा को सहन नहीं कर पाते ,इस कहानी में श्यामू अपनी मांँ को याद करके दुखी हो रहा है और उन्हें बुलाने के लिए पतंग का सहारा लेना उत्तम समझता है अतः इससे हमें स्पष्ट पता चलता है कि बच्चों का मन बहुत ही कोमल और पवित्र होता है।

2-"एक दिन उसने ऊपर एक पतंग उड़ती देखी। न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा।"

प्रश्न – 1 ‘उसने’- से किस की ओर संकेत किया गया है? वह उदास क्यों रहा करता था?

उत्तर - "उसने" से श्यामू की ओर संकेत किया गया है। वह उदास इसलिए रहा करता था क्योंकि उसकी माँ राम जी के पास चली गई थी। अर्थात् वह कभी नहीं लौटेगी । अपनी माँ को याद में वह अक्सर घर के कोने में बैठकर आकाश की ओर देखा करता था।

प्रश्न - 2 उड़ती हुई पतंग को देखकर उसका ह्रदय क्या सोचकर खिल उठा? 

उत्तर - जब श्यामू ने एक दिन पतंग को आसमान में उड़ते हुए देखा तो वह मन ही मन बहुत खुश हो गया। उसके दिल में यह ख्याल आया कि वह पतंग के द्वारा अपनी काकी को नीचे जरूर ला पाएगा। यह सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा।

प्रश्न – 3 पतंग मँगवाने के लिए उसने किन से प्रार्थना की ? उसकी बात सुनकर उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर - पतंग मँगवाने के लिए श्यामू ने अपने पिता विश्वेश्वर से प्रार्थना की। पत्नी की मृत्यु के बाद विश्वेश्वर ( श्यामू के पिता) उदास रहा करते थे। जब श्यामू ने अपने पिता विश्वेश्वर से पतंग मँगवाने की प्रार्थना की तो वे उदास भाव में बोले कि अच्छा मँगा दूँगा और कह कर चले गए। किंतु उसको पतंग नहीं मँगवा कर दी।

प्रश्न – 4 पतंग प्राप्त करने के लिए उसने किस उपाय का सहारा लिया और पतंग मंगवाने के लिए किस की सहायता ली? इसका क्या परिणाम निकला?

उत्तर - पतंग प्राप्त करने के लिए श्यामू अपने पिता के कोट से चवन्नी चुरा ली और पतंग को मँगवाने के लिए उसने अपने मित्र भोला (सुखिया दासी के पुत्र)की सहायता ली। जब उसके पिता विश्वेश्वर को यह बात पता चली कि श्यामू ने उनकी जेब से चवन्नी चुराई है तब वह क्रोधित हुए और श्यामू को तमाचा मार दिया।

3-"देखो, खूब अकेले में जाना ,कोई जान ना पाए।"

प्रश्न – 1 वक्ता और श्रोता कौन कौन है ? दोनों का परिचय दीजिए।

उत्तर - इस वाक्य में वक्ता श्यामू है और श्रोता सुखिया दासी का बेटा भोला है ।श्यामू अपने पिता विश्वेश्वर का बेटा है । वह सीधा सा कोमल दिल वाला बालक है। भोला सुखिया दासी का बेटा और श्यामू का समवयस्क साथी भी है।

प्रश्न – 2 वक्ता ने श्वेता को अकेले में जाने के लिए क्यों कहा? उसे किस बात का भय था ?

उत्तर - श्यामू ने पतंग के पैसे अपने पिता की जेब से चुराए थे। इसलिए वह चाहता है कि उसका मित्र बिना किसी को दिखे अति शीघ्र पतंग लेकर आ जाए। किसी को यदि यह बात पता चलती है तो हो सकता है उसके काम में रुकावट आ जाए।

प्रश्न – 3 वक्ता ने उससे क्या मँगवाया ?उस वस्तु को लाने के लिए उसने उसे कितने पैसे दिए? वे पैसे उसने कहां से प्राप्त किए थे और क्यों?

उत्तर - श्यामू ने भोला से एक पतंग और डोर को मंँगवाया ।पतंग को मंँगवाने के लिए श्यामू अपने पिता विश्वेश्वर की जेब से पैसे चुराए और भोला को दे दिए । ताकि वह पतंग के द्वारा अपनी काकी को नीचे ला सके।

प्रश्न – 4 वक्ता उस वस्तु का प्रयोग किस लिए करना चाहता था? वह उसका प्रयोग क्यों नहीं कर पाया?

उत्तर - वक्ता श्यामू पतंग का प्रयोग करके काकी को उस पर बैठा कर नीचे लाना चाहता था ।जब श्यामू के पिता विश्वेश्वर को यह बात पता चली कि उसकी जेब से पैसे गायब हुए हैं तो वह बहुत क्रोधित हो गए । उन्होंने दोनों से पूछा कि चोरी किसने की है, यह सुनकर भोला ने डरकर सारी बात विश्वेश्वर को बता दी ।विश्वेश्वर क्रोधित हुए और श्यामू को डांँटते हुए पतंग फाड़ दी। जिस कारण श्यामू काकी को नीचे लाने के लिए पतंग का प्रयोग नहीं कर पाया।

4-'अकस्मात शुभ कार्य में विघ्न की तरह उग्र रूप धारण किए हुए विश्वेश्वर वहाँ आ पहुंँचे।"

प्रश्न - 1 'शुभ कार्य' और 'विघ्न' शब्दों का प्रयोग किस-किस संदर्भ में किया गया है?

उत्तर - श्यामू पतंग में डोरी बाँध रहा था और वह इसका प्रयोग अपनी माँ को नीचे लाने में करने वाला था। उसके लिए शुभ कार्य था परंतु शुभ कार्य में विघ्न की तरह उसके पिता वहाँ पहुँचे और उसे डाँटने लगे यही इस संदर्भ में दर्शित किया गया है।

प्रश्न - 2 विश्वेश्वर कौन है ? उनकी उग्रता का क्या कारण था ?

उत्तर - विश्वेश्वर श्यामू के पिता है ।जब उन्हें पता चला कि उनकी जेब से पैसे गायब हो गई है ,तो वह बहुत क्रोधित हुए ।सच जानने के लिए वे उन दोनों से पूछने लगे कि पैसे किसने चुराए हैं तो भोला ने डरकर सारी पोल खोल दी और सच विश्वेश्वर के सामने आ गया ।श्यामू को तमाचा जड़ दिया और कहा 'चोरी करोगे तो जेल जाओगे' यही कहकर पतंग भी फाड़ दी।उनकी उग्रता का यही कारण था।

प्रश्न - 3 वहाँ कौन-कौन थे और वे क्या कर रहे थे ?

उत्तर - कोठरी में श्यामू और भोला थे। वे दोनों पतंग में रस्सी बाँध रहे थे और उस पर काकी का नाम लिख रहे थे ताकि उस पतंग के सहारे नीचे आ जाए।

प्रश्न - 4 विश्वेश्वर ने धमकाकर किससे क्या पूछा और उन्हें असलियत का पता कैसे चला ? उन्होंने अपराधी को क्या दंड दिया ?

उत्तर - जब विश्वेश्वर को पता चला कि उनकी कोट की जेब से पैसे गायब हुए हैं तो वह क्रोधित हो गए और उन्होंने श्यामू और भोला को धमकाया कि किसने मेरी कोट की जेब से पैसे चुराए हैं। यह सुनकर भोला डर गया और सारी बात बता दी ।भोला ने कहा कि चोरी श्यामू ने की है , उसी ने मुझे पतंग लाने के लिए कहा था ।‌ विश्वेश्वर श्यामू पर बहुत क्रोधित हुए उसे तमाचा जड़ दिया। पतंग को भी नष्ट कर दिया।

5-"भोला सकपकाकर एक ही डाँट में मुखबिर हो गया।"

 प्रश्न - 1 भोला कौन था ? वह क्यों सकपका गया ? मुखबिर' शब्द का क्या अर्थ है ?

उत्तर - भोला सुखिया दासी का बेटा था ।वह श्यामू का समव्यस्क मित्र था ।जब उग्र रूप धारण किए विश्वेश्वर उस कोठरी में पहुँचे और धमकाकर भोला और श्यामू से चोरी का कारण पूछने लगे तो भोला ने डरकर श्यामू की सारी बात को कह दिया । मुखबिर का अर्थ है-" पोल खोल देना।"

प्रश्न - 2 डाँटने वाले का परिचय दीजिए ? उसके डाँटने का क्या कारण था ?

उत्तर - डाँटने वाले का नाम विश्वेश्वर था जो कि श्यामू के पिता थे, जब विश्वेश्वर को पता चला कि उनके बेटे ने उनकी जेब से पैसे चुराए हैं तो वह बहुत गुस्सा हुए ।और गुस्से में श्यामू को तमाचा जड़ दिया।

प्रश्न - 3 भोला ने डाँटने वाले को क्या बताया? भोला की बात सुनकर डाँटने वाले ने किसे क्या दंड दिया ?

उत्तर - उग्र रूप धारण किए विश्वेश्वर जब भोला और श्यामू को धमकाकर पूछने लगे कि तुमने मेरी जेब से पैसे चुराए थे। तब यह बात सुनकर भोला घबरा गया और उसने सारी बात बता दी। उसने बताया कि पैसे श्यामू ने चुराए थे। श्यामू ने मुझसे पतंग लाने के लिए कहा था। यह सुनकर विश्वेश्वर और भी क्रोधित हो गए ।श्यामू को डांँटा और तमाचा जड़ते हुए कहने लगे कि 'चोरी सीखो गे तो जेल जाओगे 'यह कहकर में पतंग को भी फाड़ दिया।

प्रश्न - 4 भोला की बात सुनकर डाँटने वाले की क्या मनोदशा हुई ?

उत्तर - भोला ने जब विश्वेश्वर को बताया कि श्यामू ने पतंग अपनी काकी को नीचे लाने के लिए खरीदी थी, तब उन्हें बहुत ही दुख हुआ ।यह सुनकर हत बुद्धि हो गए थे । पतंग पर काकी का नाम लिखा देखा तो उन्हें बहुत पश्चाताप हुआ।उन्हें एहसास हुआ कि वे व्यर्थ में ही अपने बच्चे को डाँट रहे थे।





Monday, 22 April 2024

साखी


कविता  1 साखी
कवि - कबीरदास


 निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए - 

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागू पायँ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय।।

प्रश्न - 1 संत कबीर ने गुरु और ईश्वर की तुलना किस प्रकार की है तथा इस दोहे के माध्यम से क्या सीख दी है ?

उत्तर 1. संत कबीर ने गुरु और ईश्वर की तुलना करते हुए कहा है कि अगर गुरु और ईश्वर दोनों मेरे सामने हो तो मैं गुरु के चरण स्पर्श करूंगा क्योंकि गुरु ने ही मुझे ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताया हैं। इस दोहे के माध्यम से हमें यह सीख मिलती है कि गुरु के बिना ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि ईश्वर को पाने का माध्यम गुरु ही है।

प्रश्न - 2 'गुरु' और 'भगवान' को अपने सामने पाकर कबीर ने कौन-सी समस्या उत्पन्न हुई ? कबीर ने उसका हल किस प्रकार निकाला और क्यों ?

उत्तर 2. गुरु और भगवान को सामने पाकर कबीर की समस्या है कि वह किसके चरण स्पर्श करें। कबीर ने उसका हल इस प्रकार निकाला की वह पहले गुरु के चरण स्पर्श करेगा क्योंकि गुरु ने ही ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताया है। इस प्रकार गुरु ईश्वर से भी महान है। अगर गुरु न होते तो ईश्वर की प्राप्ति असंभव थी।

प्रश्न - 3 'बलिहारी गुरु आपनो' कबीर ने ऐसा क्यों कहा है ?

उत्तर 3. 'बलिहारी गुरु आपनो' अर्थात् मैं अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ । कबीर ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि गुरु ने ही उसे भगवान के दर्शन करवाएं हैं।

प्रश्न -4 'गुरु गोबिंद दोऊ खड़े' - शीर्षक साखी के आधार पर गुरु का महत्त्व प्रतिपादित कीजिए।

उत्तर 4. कबीर की दृष्टि में गुरु की महिमा अपार है। वह गुरु को ईश्वर से भी बढ़कर मानते हैं। उनका मत है कि गुरु की कृपा से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। कबीर का कहना है कि भगवान के रूठने पर गुरु का सहारा मिल सकता है किंतु गुरु के रूठने पर कोई सहारा नहीं मिल सकता है।

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि।
प्रेम गली अति साँकरी, तामे दो न समाहि।।

प्रश्न - 1 'जब 'मैं' था तब हरि नहीं' - दोहे में 'मैं' शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया गया है ? 'जब मैं था तब हरि नहीं' - पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर 1. दोहे में 'मैं' शब्द का प्रयोग स्वयं कबीरदास जी ने अहंकार के लिए किया है। इस पंक्ति द्वारा कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक मनुष्य के भीतर अहंकार की भावना होती है तब तक उसमें ईश्वर का वास नहीं हो सकता है। अहंकारी व्यक्ति ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग को नहीं समझ सकता।

प्रश्न - 2 कबीर के अनुसार प्रेम की गली की क्या विशेषता है ? प्रेम की गली में कौन-सी दो बातें एक साथ नहीं रह सकती और क्यों ?
उत्तर 2. कबीर के अनुसार प्रेम की गली बहुत संकरी (पतली) और तंग है। इसमें भगवान और अहंकार साथ-साथ नहीं रह सकते। भाव यह है कि यदि व्यक्ति अहंकारी है तो वह कभी भी भगवान को प्राप्त नहीं कर सकता और जो भगवान को पा लेता है, उसका अहंकार स्वत: ही समाप्त हो जाता है।

प्रश्न - 3 उपर्युक्त साथी द्वारा कबीर क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर 3. उपर्युक्त साखी द्वारा कबीर यह संदेश देना चाहते हैं कि व्यक्ति को घमंड का त्याग कर देना चाहिए क्योंकि जिन वस्तु पर वह घमंड करता है, वे एक दिन समाप्त हो जाती हैं परंतु ईश्वर को प्राप्त करके घमंड करने वाली वस्तुओं की आवश्यकता ही नहीं रहती। ईश्वर शाश्वत है, सत्य है, और हमेशा रहने वाला है।

प्रश्न - 4 'प्रेम गली अति  साँकरी' - पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 4. उपर्युक्त पंक्ति का आशय यह है कि प्रेम गली बहुत छोटी है। उसमें एक साथ मनुष्य का अहंकार और भगवान नहीं रह सकते। जहाँ ईश्वर का वास होता है वहां अहंकार नहीं होता। इस प्रकार भगवान के प्रति जो प्रेम गली है, उसमें ईश्वर ही रह सकते हैं अहंकार नहीं।

काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।

प्रश्न - 1 कबीर ने मसजिद की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं ?
उत्तर 1. कबीर ने अपनी साखियों में प्रचलित रूढ़ियों एवं आडंबरों पर गहरी चोट की है। कबीर जी कहते हैं कि मुसलमानों ने कंकड़ पत्थर जोड़कर मस्जिद बना ली है। यह उनकी धार्मिक उपासना का स्थल है जिस पर मौलवी चिल्ला-चिल्ला कर नमाज पढ़ते हैं, जैसे कि उनका खुदा बहरा हो। उनके अनुसार खुदा तो सर्वत्र व्याप्त है, उसके लिए मस्जिद बनाकर उसमें अज़ान के लिए जोर-जोर से चिल्लाना आवश्यक नहीं है।

प्रश्न - 2 उपर्युक्त पंक्तियों में निहित व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर 2. उपर्युक्त पंक्तियों में निहित व्यंग्य यह है कि खुदा को मन ही मन भी याद किया जा सकता है। उसे चिल्ला कर बुलाने की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा हर व्यक्ति के हृदय में वास करता है। इस प्रकार उसे शांत भाव से भी याद किया जा सकता है।

 प्रश्न - 3 उपर्युक्त दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कबीर ने बाहय आडंबरो के विरोधी थे।
उत्तर 3. कबीर के अनुसार ईश्वर को याद करने के लिए बाहरी  आडंबरों की आवश्यकता नहीं है। जो व्यक्ति परमात्मा को सच्चे दिल से याद करेगा वह उसे निश्चित ही प्राप्त कर लेगा।

प्रश्न - 4 उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कबिर क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर 4. उपर्युक्त पंक्तियों द्वारा कबीर यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें अंधविश्वास व बाहरी आडंबरों को त्याग देना चाहिए क्योंकि ईश्वर को सच्चे मन से याद करके भी प्राप्त किया जा सकता है।

पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार।।

प्रश्न - 1 कबीर हिंदू की मूर्ति पूजा पर किस प्रकार व्यंग्य कर रहे हैं ?
उत्तर 1. हिंदुओं की मूर्ति पूजा पर व्यंग करते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि अगर पत्थर पूजने से भगवान मिल जाते हैं तो मैं हिमालय पर्वत को पूजुं। उससे तो यह गेहूं पीसने की चक्की ज्यादा भली है, जिससे सारा संसार अन्य खाता है। कबीर का कहना है कि मनुष्य को मूर्ति पूजा छोड़कर निर्गुण भक्ति अपनानी चाहिए।

प्रश्न - 2 'ताते यह चाकी भली' - पंक्ति द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर 2. कबीर दास जी मूर्तियों से गेहूं पीसने की चक्की की तुलना करते हुए कहते हैं कि यह गेहूं पीसने की  चक्की ज्यादा भली है क्योंकि इससे पीसा हुआ अन्न सारा संसार खाता है।

प्रश्न - 3 'कबीर एक समाज सुधारक थे' - उपर्युक्त पंक्तियों के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए तथा बताइए कि इन पंक्तियों द्वारा वह क्या संदेश दे रहे हैं ?
उत्तर 3. कबीर जी वास्तव में एक समाज सुधारक थे। उन्होंने हिंदू धर्म में फैले अंधविश्वासों मूर्ति पूजा और अन्य कुरीतियों का घोर विरोध किया। उन्होंने मुसलमानो  के बाहरी आडंबरों, रोज़े, नमाज़, काज़ी, मुल्ला, आदि लोगो का खंडन किया।

प्रश्न - 4 कबीर की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर 4. कबीर की भाषा में भोजपुरी, अवधी, ब्रज, राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली, उर्दू और फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्द भी पाए जाते हैं, इसलिए विद्वानों ने कबीर की भाषा को सधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी कहा है।

सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराय।
सब धरती कागद करौं, हरि गुन लिखा न जाय।।

प्रश्न - 1 'भगवान के गुण अनंत हैं' - कबीर ये यह बात किस प्रकार स्पष्ट की है ?
उत्तर - प्रस्तुत साखी के माध्यम से कबीरदास जी ने भगवान के गुणों का महिमामंडन किया है। वे कहते हैं कि यदि सातों समुद्रों की स्याही बना दी जाए, सारे जंगलों के पेड़ों की कलमें बनाई जाएँ तथा समस्त पृथ्वी को कागज के रूप में प्रयोग कर लिया जाए तब भी हम ईश्वर के गुणों का वर्णन नहीं कर सकते क्योंकि भगवान के गुण अनंत हैं।

प्रश्न - 2 कबीर की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - कबीरदास निर्गुण भक्ति शाखा के ज्ञानाश्रयी कवि थे। उन्होंने निर्गुण ब्रह्मा की उपासना की इसलिए इन्होंने मूर्ति-पूजा, ढोंग-आडंबर आदि का डटकर विरोध किया। यह भक्ति सामान्य व्यक्ति के लिए आसान नहीं होती क्योंकि इसमें जप-तप और ध्यान का महत्व होता है।

प्रश्न - 3 कबीर ने भगवान के गुणों का बखान करने के लिए किन - किन वस्तुओं की कल्पना की है ? वे इस कार्य के लिए पर्याप्त क्यों नहीं है ?
उत्तर - कबीर ने भगवान के गुणों का बखान करने के लिए सातों समुद्रों को स्याही, सारे जंगलों के पेड़ों को कलम तथा समस्त पृथ्वी को कागज बनाने की कल्पना की है। किंतु फिर भी वे इस कार्य के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि भगवान के गुण अनंत है।

प्रश्न - 4 'लेखनि सब बनराय' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि यदि सारे जंगल के पेड़ों से कलम बना दिया जाए और समस्त पृथ्वी को कागज बनाकर उसका प्रयोग किया जाए तो भी ईश्वर के गुणों को नहीं लिखा जा सकता। इसलिए हम कह सकते हैं कि भगवान के गुण अनंत हैं।

Thursday, 7 April 2022

भीड़ में खोया आदमी

भीड़ में खोया आदमी
लेखक – लीलाधर शर्मा पर्वतीय

 निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –

1. ‘उम्र में मुझ से छोटे हैं, पर अपने घर में बच्चों की फौज खड़ी कर ली है।'

क – उम्र में कौन, किससे छोटा है? दोनों का नाम बताएँ और आपस में दोनों का क्या संबंध है?

उत्तर – प्रस्तुत वाक्य लेखक द्वारा उनके अभिन्न मित्र के लिए कहा गया है। उम्र में लेखक लीलाधर शर्मा पर्वतीय जी अपने मित्र बाबू श्यामलाकांत से छोटे हैं।

ख – किसने घर में बच्चे की फौज खड़ी कर ली है? उसकी चरित्रगत विशेषताएँ लिखें।

उत्तर – लेखक के मित्र बाबू श्यामलाकांत जी ने अपने घर में बच्चों की फौज खड़ी कर ली है। बाबू श्यामलाकांत बड़े सीधे-सादे, परिश्रमी, ईमानदार किन्तु निजी जीवन में बड़े लापरवाह व्यक्ति थे।

ग – बच्चों की फौज से क्या तात्पर्य है? उन्हें वह परिवार ‘बच्चों की फौज’ क्यों लगता है ?

उत्तर – बच्चों की फौज तात्पर्य छोटे से मकान में बच्चों की अधिक संख्या होने से है। श्यामलाकांत की बड़ी बेटी की शादी थी। उनका एक बेटा पढ़ाई पूरी करके नौकरी की तलाश में भटक रहा था। एक लड़का घर के कामकाज में मदद करता है। उनकी तीन छोटी लड़कियाँ और दो छोटे लड़के थे। इसलिए लेखक को श्यामलाकांत का परिवार बच्चों की फौज जैसा प्रतीत हुआ।

घ – क्या उसका परिवार एक सुखी परिवार है? कैसे?

उत्तर – नहीं, उनका परिवार एक सुखी परिवार नहीं था क्योंकि इतने बड़े परिवार में रहन-सहन व खान-पान की कोई उचित व्यवस्था नहीं थी। हर दिन कोई न कोई बीमार रहता था। घर में कोई भी काम ढंग से नहीं हो पाता था। कोई न कोई परेशानी उन्हें घेरे रहती थी।

2. भाई, नाम तो तुम्हारा लिख देता हूँ पर जल्दी नौकरी पाने की कोई आशा मत करना।

क – यह पंक्ति कौन, किसके लिए कह रहा है वह क्यों कह रहा है ?

उत्तर – श्यामलाकांत बाबू का बड़ा लड़का दीनानाथ रोजगार कार्यालय में जब नौकरी पाने के लिए अपना नाम लिखवाने गया था तब वहाँ उपस्थित अधिकारी ने उसका नाम तो लिख दिया परंतु साथ ही में कह भी दिया कि वह जल्दी नौकरी पाने की कोई आशा न रखें क्योंकि उसकी योग्यता वाले हज़ारों लोग पहले ही कतार में थे ।

ख - उसे नौकरी खोजते कितने वर्ष हो गए? उसे नौकरी क्यों नहीं मिल रही ?

उत्तर – उसे नौकरी खोजते हुए दो वर्ष हो गए थे। बढ़ती जनसंख्या के कारण बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ती है क्योंकि नौकरी के एक पद के लिए सामान्य योग्यता के अनेक उम्मीदवार आवेदन देते हैं।

ग – इस पंक्ति में लेखक ने देश की किस समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया है और कैसे?

उत्तर – इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने बड़ी उत्कृष्टता से देश में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण उत्पन्न बेरोजगारी की समस्या की ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया है। श्यामलाताल का बड़ा पुत्र दीनानाथ जब रोजगार कार्यालय में नौकरी के लिए गया तो वहाँ उपस्थित अधिकारी ने उससे कह दिया कि उसकी योग्यता के हजारों उम्मीदवार पहले ही कतार में है इसलिए वह जल्दी नौकरी की कामना न करें।

घ - इस समस्या के समाधान के लिए कोई दो बिंदु लिखें।

उत्तर – इस समस्या का कारण जनसंख्या विस्फोट है। अतः इस समस्या के समाधान के लिए दो बिंदु निम्नलिखित हैं –
• परिवार नियोजन की शिक्षा प्रत्येक नागरिक को दी जाए।
• जनसंख्या विस्फोट को रोका जाए तथा नियंत्रित किया जाए।

3. ‘क्या तुम्हारे पास यही दो कमरे हैं?’

क – यह पंक्ति किसने, किससे कहीं और क्यों कहीं

उत्तर – लेखक बाबू श्यामलाकांत की बेटी की शादी में शामिल होने उनके घर गए थे। लेखक ने वहाँ बच्चों की भीड़ देखी, जिसके हिसाब से दो कमरों का घर बहुत छोटा था। इसलिए लेखक ने श्यामलाकांत से यह प्रश्न किया।

ख – इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कौन - सी परेशानी बताई?

उत्तर – उन्होंने बताया कि वह दो वर्ष से मकान की तलाश में भटक रहे हैं। शहर में चक्कर काट-काट कर उनके जूते घिस गए थे तब बड़ी मुश्किल से उन्हें मकान के नाम पर सिर छिपाने के लिए गली के अंदर एक छत मिली है।

ग – उन कमरों में कितने लोग रहते हैं? उनका विवरण दें ।

उत्तर – उन कमरों में श्यामला काम उसकी पत्नी व उनके आठ बच्चे रहते थे। इतने बड़े परिवार के लिए दो कमरे बहुत कम थे। श्यामला कांत का बड़ा लड़का दीनानाथ दो वर्षो से नौकरी की तलाश कर रहा था, दूसरा बेटा सुमंत घर के छोटे-मोटे काम काज देखा करता था, एक बेटी की शादी होने वाली थी बाकी और तीन छोटी लड़कियाँ और दो छोटे लड़के थे।

घ - इस पंक्ति में किस समस्या की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर – प्रस्तुत पंक्ति में लेखक ने बढ़ती जनसंख्या के कारण आवास की समस्या की ओर संकेत किया है। शहर पहले की तुलना में कई गुना फैल चुके हैं, दूर-दूर तक नई कालोनी बन गई है, फिर भी बहुत से लोग मकानों के लिए भटक रहे हैं।

4. ‘कब से अस्वस्थ हैं? डॉक्टर को दिखा कर इलाज नहीं करा रही हैं क्या?’

क – यह पंक्ति किसने, किससे कही और क्यों कही?

उत्तर – प्रस्तुत वाक्यांश लेखक ने श्यामलाकांत की पत्नी से कहा। जब श्यामला जी की पत्नी जलपान लेकर आई तब उनके पीछे तीन छोटी लड़कियाँ और पल्ला पकड़े दो लड़के थे। लेखक उनकी दुर्बल काया और पीला चेहरा देखकर स्तब्ध रह गय। इसलिए उसने यह बात श्यामला जी की पत्नी से कही।

ख – इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने किस परेशानी का उल्लेख किया?

उत्तर – इस प्रश्न के उत्तर में श्यामलाकांत जी की पत्नी ने बताया कि इतने बड़े परिवार में रोज कोई न कोई बीमार रहता ही है। अस्पताल में भी रोगी व उनके संबंधी डॉक्टर को मधुमक्खी के छत्ते की तरह घेरे रहते हैं,जिस कारण डॉक्टर अच्छी तरह देख नहीं पाते। ऐसा लगता है मानो जैसे पूरा शहर अस्पताल में उमड़ आया हो।

ग – व्यक्ति बीमार किन कारणों से होता है? कोई दो कारण बताएँ। इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

उत्तर – उचित आहार की कमी के कारण व्यक्ति की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। कुपोषण बीमारियों का कारण होता है।
दूषित वातावरण व गंदगी भी बीमारी के कीटाणुओं को बढ़ाते हैं। इसलिए स्वस्थ रहने के लिए पौष्टिक आहार और स्वच्छ वातावरण अति आवश्यक है।

घ – बीमारियों से बचने के कोई दो उपाय बताएँ।

उत्तर – बीमारियों से बचने के लिए हमें गंदगी और दूषित वातावरण से बचना चाहिए। आहार में पौष्टिक तत्व भरपूर मात्रा में शामिल करने चाहिए। नियमित योग तथा व्यायाम करना चाहिए।

5. ‘मुझे अपने मित्र श्यामलाकांत को अब इस भीड़ का रहस्य बताने की आवश्यकता नहीं है।'

क – ‘मुझे’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है? उन्हें अपने मित्र को किस भीड़ का रहस्य बताने की आवश्यकता नहीं है और क्यों?

उत्तर – लेखक लीलाधर शर्मा पर्वतीय जी के लिए ‘मुझे’ शब्द का प्रयोग किया गया है। उन्हें अपने मित्र को भीड़ का रहस्य बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि श्यामलाकांत स्वयं इतने बड़े परिवार के कारण इन समस्याओं को झेल रहे थे।

ख – श्यामलाकांत को अपने घर में भीड़ के कारण किन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?

उत्तर – श्यामलाकांत को अपने घर में भीड़ के कारण बच्चों के पालन-पोषण की, रहन-सहन क, शिक्षा-दीक्षा की समस्याएँ झेल रहे थे। गंदे तथा संकीर्ण मकानों में दूषित वातावरण के कारण घर में कोई न कोई बीमार रहता ही था।

ग – ‘भीड़’ शब्द से देश की किस समस्या की ओर संकेत किया गया है? इस समस्या के कारण किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है?

उत्तर – ‘भीड़’ शब्द देश में बढ़ती हुई अनियंत्रित जनसंख्या की ओर संकेत करता है। इस समस्या के कारण हमारे देश में रोजगार संबंधी समस्याएँ, चिकित्सा संबंधी समस्याएँ, आवासीय समस्याएँ, यातायात संबंधी समस्याएँ व पालन -पोषण संबंधी अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।

घ – ‘भीड़’ से पैदा होने वाली समस्याओं से किस प्रकार छुटकारा मिल सकता है?

उत्तर – भीड़ अथवा बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए लोगों को सामाजिक रूप से जागरूक करना अति आवश्यक है। लोगों को इस बात की परिवार नियोजन की शिक्षा देनी चाहिए कि छोटा परिवार ही सुखी परिवार होता है। लोगों को अपनी आय तथा साधनों के अनुरूप ही परिवार को नियोजित करना चाहिए।

Wednesday, 6 April 2022

बात अठन्नी की

बाजार के बाद गुपचुप रूप से अब बैंकों ने भी अठन्नी को नकारा

बात अठन्नी की
सुदर्शन

“अगर तुम्हें कोई ज्यादा दे, तो अवश्य चले जाओ । मैं तनख्वाह नहीं बनाऊंगा।''

I. वक्ता कौन है ? उसका परिचय दीजिए। उसने उपयुक्त वाक्य किस संदर्भ में कहा है?
 उत्तर - वक्ता  बाबू जगत सिंह है। वह बहुत रिश्वत लेते थे और रसीला को बहुत कम तनख्वाह देते थे। जब रसीला ने तनख्वाह को बढ़ाने की बात कही तो उन्होंने तनख्वाह बढ़ाने से मना कर दिया और कहा कि अगर कोई तुम्हें दस रुपए से ज्यादा तनख्वाह दे, तो चले जाओ। इस बात से यह पता चलता है कि वह कितने कठोर हृदय के व्यक्ति हैं।

II. श्रोता कौन है ? उसने तनख्वाह बढ़ाने की प्रार्थना क्यों की?
उत्तर - श्रोता रसीला है, जिसकी तनख्वाह दस रुपए है। उसने तनख्वाह बढ़ाने की प्रार्थना इसलिए की क्योंकि उसके गांव में बूढ़े पिता पत्नी एक लड़की और दो लड़के थे इन सब का भार उसी के कंधों पर था वह सारी तनख्वाह घर भेज देता पर घर वालों का गुजारा ना चल पाता था।

III. वेतन न बढ़ने पर भी रसीला बाबू जगतसिंह की नौकरी क्यों नहीं छोड़ना चाहता था ?
उत्तर - वेतन न बढ़ने पर भी रसीला बाबू जगतसिंह की नौकरी नहीं छोड़ना चाहता था क्योंकि उसे लगता था कि वह वहां इतने सालों से है लेकिन उस पर कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यदि वह कहीं और चला भी जाए तो शायद कोई ग्यारह - बारह दे दे, पर ऐसा आदर न मिलेगा।

IV. रसीला को रुपयों की आवश्यकता क्यों थी? उसकी सहायता किसने की? सहायता करने वाले के संबंध में उसके क्या विचार किया?
उत्तर - रसीला को रुपयों की आवश्यकता इसलिए थी क्योंकि उसके घर से खत आया था कि उसके बच्चे बीमार है और उनके पास पैसे नहीं है। उसकी सहायता रमज़ान ने की। रमजान के संबंध में रसीला के विचार थे कि गरीब होकर भी उसने मेरी सहायता की, वह आदमी नहीं, देवता है। ईश्वर उसका भला करें।

“बाबू साहब की मैंने इतनी सेवा की, पर दुख में उन्होंने साथ नहीं दिया।"

I. बाबू साहब कौन थे? उनका परिचय दीजिए।
उत्तर - बाबू साहब इंजीनियर जगतसिंह थे। वे बहुत भ्रष्ट और निर्दयी थे। रसीला उनके यहां कई सालो से नौकर था। जब रसीला अपना वेतन बढ़ाने की बात कहता तो वह नहीं मानते थे। एक दिन उन्होंने रसीला को उसकी छोटी - सी चोरी के लिए जेल पहुंचा दिया, लेकिन खुद रोजाना हज़ार – पांच सौ  की रिश्वत लेते थे।

II. वक्ता को कितना वेतन मिलता था? उसमें उसका गुजारा क्यों नहीं हो पाता था?
उत्तर - वक्ता रसीला था। उसको दस रुपए वेतन मिलता था लेकिन उसका गुजारा दस रूप में नहीं हो पाता था क्योंकि गांव में उसके बूढ़े पिता, पत्नी, एक लड़की और दो लड़के थे। इन सब का भार उसी के कंधों पर था।

III. बाबू साहब द्वारा वक्ता का वेतन ने बढ़ाए जाने पर भी वह कहीं और नौकरी क्यों नहीं करना चाहता था ?
उत्तर - वेतन न बढ़ने पर भी रसीला बाबू जगतसिंह की नौकरी नहीं छोड़ना चाहता था क्योंकि उसे लगता था कि वह वहां इतने सालों से है लेकिन उस पर कभी किसी ने संदेह नहीं किया। यदि वह कहीं और चला भी जाए तो शायद कोई ग्यारह - बारह दे दे, पर ऐसा आदर न मिलेगा।

IV. वक्ता की परेशानी को किसने, किस प्रकार हल किया? इससे उसके चरित्र की किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर - वक्ता की परेशानी को रमज़ान ने हल किया। उसने कुछ पैसे उसको दे दिए। इससे उसके चरित्र की इस विशेषता का पता चलता है कि वह बहुत दयालु और दयावान था।

'बस पाँच सौ ! इतनी-सी रकम देकर आप मेरा अपमान कर रहे हैं।' ' हुजूर मान जाइए। आप समझे आपने मेरा काम मुफ्त किया है।'

I. वक्ता और श्रोता कौन-कौन है ? उनके कथन का संदर्भ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - वक्ता बाबू जगत सिंह हैं और श्रोता एक व्यक्ति है। जब श्रोता ने बाबू जगतसिंह को पांच सौ रुपए की रिश्वत पेश की तो बाबू जगत सिंह ने कहा कि इतनी - सी रकम मेरे लिए कम है, मैं तो बड़ा आदमी हूं मुझे और रिश्वत चाहिए।

II. रसीला उनकी बातचीत को सुनकर क्या समझ गया और क्या सोचने लगा?
उत्तर - रसीला उनकी बातचीत सुनकर समझ गया कि भीतर रिश्वत ली जा रही है। वह सोचने लगा कि रुपया कमाने का यह आसान तरीका है।

III. 'आप मेरा अपमान कर रहे हैं।' कथन से वक्ता का क्या संकेत था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - 'आप मेरा अपमान कर रहे हैं।' यह कथन बाबू जगतसिंह  का है, जिसके द्वारा वह यह संकेत देना चाहते हैं कि वह एक बड़े आदमी हैं और उनके लिए पांच  सौ रुपए की रिश्वत बहुत कम है।

IV. उपर्युक्त पंक्तियों में समाज में व्याप्त किस बुराई की ओर संकेत किया गया है? इस बुराई का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर - उपयुक्त पंक्तियों में समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की ओर संकेत किया गया है। इस बुराई का समाज पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। जो लोग रिश्वत लेते हैं, वह किसी का काम बिना रिश्वत लिए नहीं करना चाहते और जो लोग ईमानदार हैं तथा रिश्वत नहीं लेते उन्हें कुछ नहीं मिलता। इस कारण अमीर लोग और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब लोग और गरीब होते जा रहे हैं।

बस इतनी-सी बात! हमारे शेख साहब तो उनके भी गुरु हैं।

I. वक्ता और श्रोता कौन-कौन है? दोनों का परिचय दीजिए।
उत्तर - वक्ता रमज़ान है तथा श्रोता रसीला है। रमज़ान जिला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन के यहां चौकीदार है तथा रसीला इंजीनियर बाबू जगतसिंह के यहां नौकर है। यह दोनों अच्छे मित्र हैं तथा दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख के साथी हैं।

II. 'बस इतनी-सी बात' - पंक्ति का व्यंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - रमज़ान ने यह व्यंग इसलिए किया क्योंकि रिश्वत लेने के मामले में शेख सलीमुद्दीन बाबू जगतसिंह के भी गुरु थे। बाबू जगत सिंह ने रिश्वत में पांच सौ रुपए ही लिए थे, यदि शेख सलीमुद्दीन होते तो एक हज़ार रुपए से कम में न मानते।

III. 'शेख साहब तो उनके भी गुरु हैं' - वाक्य में 'शेख साहब' और 'उनके' शब्दों का प्रयोग किस-किसके लिए किया गया है? 'उनके भी गुरु है’ - पंक्ति द्वारा क्या व्यंग किया गया है?
उत्तर - वाक्य में 'शेख साहब' शेख सलीमुद्दीन के लिए तथा 'उनके' बाबू जगतसिंह के लिए प्रयोग किया गया है। वाक्य में 'उनके भी गुरु है' व्यंग इसलिए किया गया है क्योंकि न्याय के सिंहासन पर बैठ कर भी शेख सलीमुद्दीन रिश्वत का लेन-देन किया करते थे और हज़ार से कम में न मानते थे।

IV. वक्ता ने 'शेख साहब' के संदर्भ में श्रोता से अपनी विवशता के संबंध में क्या-क्या कहा ?
उत्तर - रमज़ान में रसीला से कहा कि बाबू साहब द्वारा ली जा रही रिश्वत शेख साहब के मुताबिक बहुत कम है। रमजान के अनुसार गुनाह का फल मिलेगा या नहीं, यह तो भगवान जाने, पर ऐसी ही कमाई से कोठियों में रहते हैं, और एक हम हैं कि परिश्रम करने पर भी हाथ में कुछ नहीं रहता।

'रसीला ने तुरंत अपना अपराध स्वीकार कर लिया । उसने कोई बहाना नहीं बनाया।'

I. रसीला का मुकदमा किस की अदालत में पेश हुआ ? उनका परिचय दीजिए।
उत्तर - रसीला का मुकदमा शेख सलीमुद्दीन की अदालत में पेश हुआ था। शेख सलीमुद्दीन बाबू जगत सिंह के पड़ोसी थे तथा जिला मजिस्ट्रेट होते हुए भी वे बहुत बेईमान और रिश्वतखोर थे।

II. रसीला का क्या अपराध था? उसने उसे तुरंत स्वीकार कर लिया, इससे उसके चरित्र की किस विशेषता की ओर संकेत होता है?
उत्तर - रसीला का अपराध बस इतना ही था कि उसने रमज़ान का कर्ज उतारने के लिए बाबू जगतसिंह द्वारा मंगाई गई पांच रुपए की मिठाई में अठन्नी की हेरा-फेरी की थी।
चोरी पकड़े जाने पर उसने अपना अपराध तुरंत स्वीकार कर लिया, जिससे यह सिद्ध होता है कि वह एक भला मानस और ईमानदार व्यक्ति था।

III. रसीला क्या-क्या बहाने बनाकर अपने को बेकसूर साबित कर सकता था, पर उसने ऐसा क्यों नहीं किया?
उत्तर - रसीला चाहता तो वह यह कह सकता था कि यह साजिश है। मैं नौकरी नहीं करना चाहता इसीलिए हलवाई से मिलकर मुझे फंसाया जा रहा हैं, पर एक और अपराध करने का साहस रसीला न जुटा पाया।

IV. रसीला को कितनी सजा हुई? न्याय व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर - रसीला को सिर्फ एक अठन्नी की हेरा-फेरी के लिए छह महीने की कारावास का दंड मिला। प्रस्तुत कहानी में न्याय व्यवस्था पर करारा प्रहार किया गया है। जो लोग ऊंचे पदों पर बैठे हैं, वे हजारों की रिश्वत का लेन देन करते हैं और कोठियों में रहकर एक सम्मानित जीवन व्यतीत करते हैं, वही एक गरीब मात्र एक अठन्नी की हेराफेरी के लिए छह महीने कारावास का दंड भोगता है।

'फैसला सुनकर रमज़ान की आंखों में खून उतर आया।'

I. रमज़ान कौन था ? उसका परिचय दीजिए।
उत्तर - रमजान का रसीला का मित्र था। वह जिला मजिस्ट्रेट शेख सलीमुद्दीन के यहां चौकीदार था और बहुत ही दयावान था। उसने रसीला की सहायता उसके बुरे समय में की थी।

II. फैसला किसने सुनाया था ? उसकी चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर - फैसला शेख सलीमुद्दीन में सुनाया था। वह खुद ही बहुत बड़े रिश्वतखोर थे न्याय की गद्दी पर बैठकर भी वे बहुत बड़े बेईमान और भ्रष्ट व्यक्ति थे

III. फैसला सुनकर रमज़ान क्या सोचने लगा?
उत्तर - फैसला सुनकर रमजान की आंखों में खून उतर आया और वह सोचने लगा कि यह दुनिया न्याय नगरी नहीं, अंधेर नगरी है। चोरी पकड़ी गई तो अपराध हो गया। असली अपराधी बड़ी-बड़ी कोठियों में बैठकर दोनों हाथों से धन बटोर रहे हैं। उन्हें कोई नहीं पकड़ता।

IV. 'बात अठन्नी की' कहानी द्वारा लेखक ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर - बात अठन्नी की कहानी द्वारा लेखक ने यह संदेश दिया है कि अमीर लोग रिश्वत का लेन-देन करके भी सम्मानित जीवन व्यतीत करते हैं, जबकि एक निर्धन व्यक्ति केवल एक अठन्नी की हेरा-फेरी करने के जुर्म में छह महीने की कारावास का दंड भोगता है। यदि हमारे समाज में रिश्वतखोरी ऊपर करारा व्यंग किया जाए तो हमारे समाज में रिश्वतखोर कम होने लगेंगे।

महायज्ञ का पुरस्कार


 महायज्ञ का पुरस्कार
  - सियारामशरण गुप्त
उत्तर कुंजी

1. 'अकस्मात दिन फिरे और सेठ को गरीबी का मुंह देखना पड़ा।' 'संगी साथियों ने भी मुंह फेर लिया।'

क- सेठ के चरित्र की क्या विशेषताएं थी ?

उत्तर – सेठ अत्यंत विनम्र, उदार और धर्मपरायण थे। कोई साधु-संत उनके द्वार से निराश न लौटता था। सेठ ने दान में न जाने कितना धन दीन-दुखियों में बांट दिया था।

ख- 'संगी-साथियों ने भी मुंह फेर लिया' पंक्ति द्वारा समाज की किस दुर्बलता की ओर संकेत किया गया है ?

उत्तर - इस पंक्ति द्वारा समाज की उस दुर्बलता की ओर संकेत किया गया है कि जब विपत्ति आती है तो पक्के दोस्त, रिश्तेदार एवं संगी साथी भी साथ नहीं देते।

ग- उन दिनों क्या प्रथा प्रचलित थी? सेठानी ने सेठ को क्या सलाह दी ?

उत्तर – उन दिनों यज्ञ से प्राप्त फलों को खरीदने व बेचने की प्रथा प्रचलित थी। सेठानी ने सेठ को यह सलाह दी कि उन्हें अपने एक यज्ञ को बेच देना चाहिए ताकि उनके घर का गुजारा चल सके।

घ- सेठानी की बात मानकर सेठ जी कहां गए? धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में क्या अफवाह थी ?

उत्तर - सेठानी की बात मानकर सेठ जी कुंदनपुर नाम के एक नगर गए। धन्ना सेठ की पत्नी के बारे में यह अफवाह थी कि उन्हें एक दैवी शक्ति प्राप्त है, जिसके द्वारा वह तीनों लोकों की बात जान लेती थीं।

2. सेठ जी, यज्ञ खरीदने के लिए तो हम तैयार हैं, पर आपको अपना महायज्ञ बेचना पड़ेगा।'

क - वक्ता कौन है? उसका उपर्युक्त कथन सुनकर सेठ जी को क्यों लगा कि उनका मजाक उड़ाया जा रहा है?

उत्तर - वक्ता धन्ना सेठ की पत्नी है। उसकी बात सुनकर सेठ जी को यह इसलिए लगा कि उनका मजाक उड़ाया जा रहा है क्योंकि वह बहुत उदार, अच्छे और धर्मपरायण व्यक्ति थे। जिनको यह लग रहा था कि उन्होंने आज तो क्या कई वर्षों से कोई यज्ञ नहीं किया।

प्रश्न - 2 सेठानी के अनुसार सेठ जी ने कौन-सा महायज्ञ किया था?

उत्तर - सेठानी के अनुसार सेठ जी ने यह महायज्ञ किया था कि वह खुद बहुत भूखे थे लेकिन जो वह अपने खाने के लिए चार रोटी लाए थे, वह सब रोटी खुद न खाकर एक दुर्बल कुत्ते को खिला दी और पानी पीकर कुंदनपुर के लिए चल दिए।

ग - सेठानी की बात सुनकर यज्ञ बेचने आए सेठ जी की क्या प्रतिक्रिया हुई?

उत्तर - सेठानी की बात सुनकर यज्ञ बेचने आए सेठ जी को आश्चर्य हुआ, क्योंकि उनके अनुसार उन्होंने कभी कोई महायज्ञ किया ही नहीं था। सेठ जी को लगा उनका मजाक उड़ाया जा रहा है।

घ - यज्ञ बेचने आए सेठ के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।

उत्तर - यज्ञ बेचने आए सेठ के चरित्र की विशेषताएँ थी कि वे बहुत उदार, धर्मपरायण और विनम्र थे। पहले वे बहुत धनी थे। उनके घर से कोई साधु संत खाली नहीं जाता था, सबको भरपेट भोजन मिलता था। वे गरीबों की हमेशा मदद करते रहते थे और इस कारण एक दिन वह बहुत गरीब हो गए।


3. सेठ ने आद्योपांत सारी कथा सुनाई। कथा सुनकर सेठानी की समस्त वेदना जाने कहां विलीन हो गई।

क- सेठ जी को खाली हाथ वापस आता देखकर सेठानी की क्या प्रतिक्रिया हुई और क्यों ?

उत्तर – सेठ जी को खाली हाथ वापस आते देखकर सेठानी डर गई क्योंकि उन्होंने सोचा था कि यज्ञ बेचने से बहुत बड़ी चीज मिलेगी और जब सेठ जी ने पूरी कहानी सुनाई तो वह बहुत खुश हुईं। उन्होंने यह सोचा कि मुश्किल के समय में भी उनके पति ने धर्म का साथ नहीं छोड़ा और अपने पति के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, “धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे।”

ख - सेठ ने आद्योपांत जो कथा सुनाई, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – जब सेठ कुंदनपुर की ओर जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में एक भूखा कुत्ता मिला। उन्होंने उसे अपनी चारों रोटियां खिला दी। जब वह धन्ना सेठ के यहां पहुंचे तो धन्ना सेठ की पत्नी ने उनसे उनके इसी महायज्ञ को मांग लिया। इस पर सेठ को आश्चर्य हुआ और कहने लगे कि मैंने तो कई सालों से महायज्ञ किया ही नहीं। उन्हें लगा कि सेठानी उनका मजाक उड़ा रही है, इसलिए वह बिना यज्ञ बेचे वहां से चले गए।

ग - सेठ जी की बात सुनकर सेठानी की समस्त वेदना क्यों विलीन हो गई ?

उत्तर - सेठ जी की बात सुनकर सेठानी की समस्त वेदना इसलिए विलीन हो गई क्योंकि उन्होंने सोचा कि मुश्किल समय में भी सेठ जी ने अपना धर्म नहीं छोड़ा। उनके पति महान है और फिर सेठ के चरणों की रज मस्तक पर लगाते हुए बोली, “धीरज रखें, भगवान सब भला करेंगे।”

घ - 'महायज्ञ का पुरस्कार' कहानी के द्वारा लेखक ने क्या संदेश दिया है?

उत्तर -  महायज्ञ का पुरस्कार कहानी के द्वारा लेखक ने यह संदेश दिया है कि निस्वार्थ भावना से किया गया कर्म किसी महायज्ञ से कम नहीं होता तथा इस प्रकार के कर्म का फल अवश्य प्राप्त होता है। जीवो पर दया करना मनुष्य का परम कर्तव्य है। नर सेवा ही नारायण सेवा सेवा होती है। स्वयं कष्ट सहन करके दूसरों के कष्टों का निवारण करना मानव धर्म है और दिखाने के लिए किया गया कर्म महत्वहीन होता है।

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